ज्योतिष विज्ञान

ज्योतिष विज्ञान ज्योतिष कुण्डली वास्तु परामर्श ,फलित हस्तरेखा, मुहूर्त विचार ,विश्लेषण आदि

यह  भगवान विष्णु का विशेष परिस्थितिजन्य छायाचित्र है। जिन के पास जिनके पास जन्मकुंडली दिखाने के लिए पैसे नहीं है,जिनके प...
19/05/2024

यह भगवान विष्णु का विशेष परिस्थितिजन्य छायाचित्र है। जिन के पास जिनके पास जन्मकुंडली दिखाने के लिए पैसे नहीं है,जिनके पास उपाय करने के लिए पैसे नहीं है दान पुण्य करने के लिए पैसे नहीं है । क्योंकि किसी भी प्रकार का उपाय करने में भी पैसे खर्च होते हैं।
उनके लिए यह छायाचित्र बहुत ही उपयोगी है......
प्रातः चार बजे उठकर स्नान पश्चात इस चित्र को सामने रखकर जो भी व्यक्ति गजेंद्र मोक्ष का पाठ करता है।
उसकी सारी समस्याओं का हल अकेला गजेंद्र मोक्ष का पाठ कर सकता है। आपको भीषण दुख से बाहर कर सकता है। सामान्य स्थिति तक ला सकता है। कर्ज मुक्त कर सकता है। लेकिन आपको पूरे विश्वास और मनोयोग के साथ इस प्रयोग को करना है। चाहे उसकी कुंडली में पितृदोष हो चाहे वह व्यक्ति कर्ज में डूबा हो चाहे वह व्यक्ति किसी प्रकार के बंधन में हो कैद में हो सारी विकट परिस्थितियों से उबारने का कार्य आपको यह प्रयोग कर देता है।.........
कहा भी गया है की
जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।।

09/11/2023

दिवाली त्योहार :- 12 नवम्बर 2023 रविवार कार्तिक कृष्ण पक्ष की प्रदोष (रात्रि )व्यापिनी अमावस्या को दिवाली मनाई जायेगी। इस दिन निशीथ काल मे अमावस्या तिथि रहेगी। नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली) भी इसी दिन मनाई जायेगी।
धनतेरस का त्योहार:- शुक्रवार प्रदोष व्रत एवं धनतेरस 10 नवम्बर 2023 को मनाया जायेगा। गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट 14नवम्बर मंगलवार तथा भईया दूज 15 नवम्बर बुधवार को मनाई जायेगी। त्योहारों में इस
बार अत्यन्त भ्रम की स्थित को देखते हुए यह पोस्ट आप के लिए है,शंका समाधान के लिए टिप्पणी में अंकित करें।
लक्ष्मी श्री गणेश जी पूजा मुहूर्त;-- इस बार दीपावली में लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त 12नवम्बर शाम 5 बजकर 11 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक का है। वृषभ काल शायं 5.39 से 7.35 बजे तक ।।
दीवाली पूजा का शुभ मुहूर्त 12 नवम्बर रात्रि 23 बजकर 39 मिनट(11.39 )से 12 बजकर 32 मिनट तक ।(यह पूजा कुछ विशिष्ट लोग ही करते है, उनके लिए)
पूजन( विधि) कैसे करें :-लक्ष्मी जी की पूजा श्रीनारायण जी के साथ करें। लक्ष्मी जी की पूजा उनके गरूड़ की सवारी का ध्यान करते हुए करें।
पूजा क्रम में सर्व प्रथम गुरु का ध्यान (अन्यथा विष्णु जी का ध्यान) प्रथम पूज्य गणपति जी, शिव जी, श्रीनारायण, देवी लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां काली ,समस्त ग्रह, कुबेर,यम की पूजा करें।
विशेष-पूजा:- कनकधारा,देवी सूक्तम(5 या 11 बार)
लक्ष्मीसहस्त्र नाम, विष्णु सहस्रनाम,श्रीदुर्गा सप्तशती का
पांचवां या 11 वां अध्याय
विद्यार्थियों के लिए नील सरस्वती स्त्रोत।
व्यापार वृद्धि के लिए - पांच कौड़ी, पांच कमल गट्टे देवी जी को अर्पित करें। प्रतिष्ठान में खाता बही पूजन मंत्र-ऊं श्रीं ह्रीं नमः।
व्यापार वृद्धि के लिए मंत्र, ऊं गं गं श्रीं श्रीं श्रीं मातृ नमः।
विद्यार्थियों के लिए ,ऊं ऐं सरस्वतिदेव्यै नमः।
सभीकेलिएपूजाविधि:-ऊं सौभाग्यप्रदायिनी,रोगहारिणी
कमलवासिनी,श्री प्रदायिनी महालक्ष्मये नमः। इसे 11बार पढ़ें।
मंत्र :-ऊं ह्रीं श्रीं श्रीं महालक्ष्मी नमः। लक्ष्मी जी को अनार और कमल पुष्प चढ़ाएं। इस तरह आप पूजा सम्पन्न कर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद प्राप्त करें।
ईश्वर सभी का कल्याण करें।
दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

क्या हैं  मलमास या पुरुषोत्तम में अंतर पूरा श्रवण करे     वेदों में सूर्य चन्द्र आदि को पुरुष और उषा अमावस्था आदि को नार...
28/06/2023

क्या हैं मलमास या पुरुषोत्तम में अंतर पूरा श्रवण करे

वेदों में सूर्य चन्द्र आदि को पुरुष और उषा अमावस्था आदि को नारी मानकर उनका जो विशद वर्णन किया गया है उसका वह रूपकत्व स्पष्ट है किन्तु ज्योतिष और पुराणों में अनेक निराकार कालमानों को सचमुच देहधारी मानव मानकर उनका अस्वाभाविक मिथ्या वर्णन किया गया है। मलमास के विषय में बृहन्नारदीय पुराण में विस्तार से लिखा है कि एक बार सारी जनता कहने लगी कि मासों के केशव, माधव आदि देव स्वामी हैं परन्तु अधिक मास अनाथ, असहाय, अपूज्य, निन्दित, अस्पृश्य और सब शुभ कर्मों में तिरस्कृत है क्योंकि इसमें सूर्य की संक्रान्ति नहीं लगती। यह सुनकर वह आत्महत्या के लिए उद्यत हो गया किन्तु बाद में कुछ सोच कर वैकुण्ठ चला गया और वहाँ विष्णु भगवान् के सामने दण्डवत् गिरकर विलाप करते हुए कहने लगा कि ये दीनबन्धो! आप द्रोपदी की भाँति मुझे शरणागत की रक्षा करें। हे नाथ! ज्योतिषशास्त्र में प्रत्येक क्षण, घटी, मुहूर्त, पक्ष, मास और दिन आदि का कोई न कोई देव स्वामी है अतः वे सब सुप्रसन्न और निर्भय हैं पर मैं निराश्रय हूँ और सब शुभ कर्मों से बहिष्कृत हूँ, अतः मरने जा रहा हूँ। ऐसा कहते-कहते वह मूर्च्छित हो गया।

"तमूचुः सकला लोका असहायं जुगुप्सितम् ।
अनहों मलमासोऽयं रविसंक्रान्तिवर्जितः ॥
अस्पृश्यो मलरूपत्वात् शुभे कर्मणि गर्हितः ।
मुमूर्षुरभवत्तस्मात् चिन्ताग्रस्तो हतप्रभः ॥
प्राप्तो वैकुण्ठभवनं दण्डवत् पतितो भुवि ।
क्षणा लवमुहूर्ताद्या मोदन्ते निर्भयाः सदा ॥
न मे नाम न मे स्वामी न च कश्चिन्ममाश्रयः ।
मरिष्ये मरिष्येऽहं सत्कर्मभ्यो निराकृतः ॥"

विष्णु के आदेश से गरुड़ ने अपने पंख के वायु से मलमास की मूर्छा दूर कर दी तो विष्णु बोले कि बेटा तुम मेरे साथ मेरे स्वामी और आराध्य देव कृष्ण भगवान् के उस गोलोक में चलो जो वैकुण्ठ तथा शिवलोक के ऊपर है और जहाँ रामेश्वर मुरलीधर कृष्ण रासमण्डल में गोपियों के बीच बैठे हैं। दोनों चले किन्तु विष्णु ने ज्योति के धाम कृष्ण को दूर से देखा तो उनके नेत्र बन्द हो गये। किसी प्रकार मलमास को पीछे कर धीरे-धीरे आगे बढ़े तो गोपियों के बीच में रत्न के सिंहासन पर विराजमान मनोहर कृष्ण को भूमि पर लेटकर प्रणाम करने लगे और बाद में हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे। जो प्रातः काल इस स्तुति का पाठ करता है उसके छोटे-बड़े सब पाप समाप्त हो जाते हैं और दुःस्वप्न शुभ फल देने लगते हैं।

"वीजयामासपक्षेण मासं तं मूर्च्छितं खगः ।
वत्सागच्छ मया सार्धं गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥
बैकुण्ठः शिवलोकश्च यस्याधस्तत्र संस्थितः ।
गोपिकावृन्दमध्यस्थं रामेशं मुरलीधरम् ॥
ददर्श दूरतो विष्णुज्यौतिषम मनोहरम्।
तत्तेजपिहिताक्षोऽसौ बद्धांजलिपुरःसरः ॥
इति विष्णुकृतं स्तोत्रं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
तस्य पापानि नश्यन्ति दुःस्वप्नः सत्फलप्रदः ॥"

उसके बाद विष्णु, श्रीकृष्ण के चरणों के पास बैठ गये और उनके पूछने पर बोले कि यह रोता हुआ मनुष्य मल- मास है। संवत्सरों, मासों आदि सारे कालमानों से तिरस्कृत है, शुभ कर्मों में निषिद्ध है और मरना चाहता है अतः कृपया इसकी । रक्षा करें। ऐसी प्रार्थना करने के बाद विष्णु हाथ जोड़कर खड़े होकर श्रीकृष्ण का मुखारविन्द निहारने लगे। श्रीकृष्ण ने कहा कि तुमने मलमास को यहाँ लाकर उसकी जो भलाई की है उससे लोक में यश पाओगे। मैं तुम्हारे कारण आज इसे अपना पुरुषोत्तम नाम और सब गुण दे रहा हूँ। अब इसके नाम से संसार पवित्र हो जायेगा और इसके पूजकों के पाप, कष्ट, दरिद्रता आदि की समाप्ति हो जायेगी। अब यह मास मेरा हो गया। जैसे वृक्ष का एक बीज बोने पर करोड़ों गुना हो जाता है वैसे ही इसमें दिये दान कोटिगुना होकर मिलेंगे।

"उपविष्टस्ततोविष्णुः श्रीकृष्णचरणाम्बुजे ।
उवाचायमनर्होऽस्ति मलिनः शुभकर्मणि ॥
पुरस्तस्थौ ततस्तस्य निरीक्षन् वदनाम्बुजम्॥
अस्मै समर्पिताः सर्वे ये गुण मयि संस्थिताः ॥
एतन्नाम्ना जगत् सर्वं पवित्रं च भविष्यति ।
पूजकानामयं पापदुःखदारिद्रयखण्डनः ।
क्षेत्रनिःक्षिप्तबीजानि वर्धन्ते कोटिशो यथा ।
तथा कोटिगुणं पुण्यं कृतं मत्पुरुषोत्तमे ॥"

यह संभव है कि काम, लोभ आदि से होन, वायुभक्षी, निराहार तपस्वी मेरे लोक में न पहुँचें पर पुरुषोत्तम के पूजक तो अनायास पहुँचते हैं। बड़े-बड़े याज्ञिक, दानी, धर्मात्मा मुक्त न होकर स्वर्ग से लौट आते हैं पर इसके पूजक नहीं।पुरुषोत्तम के भक्तों को अपराध कभी लगता ही नहीं। मैं अपने भक्त की कामना की पूर्ति में विलम्ब कर सकता हूँ पर उसके भक्तों के काम में नहीं। जो मूढ़ इसमें दान नहीं करते वे भाग्यहीन हैं। उनके लिए शान्ति, खरगोश को सींग के समान है। वे जीवन भर कष्टाग्नि में जलते हैं और मरने पर कुम्भीपाक में जाते हैं जो नारियाँ इसमें स्नान-दान करती हैं उनकी कामना मैं पूर्ण करता हूँ और जो नहीं करतीं उन्हें सम्पत्ति, पुत्र और स्वामी आदि का सुख नहीं देता। बारह सहस्र वर्षों के गंगास्नान के फल और आगमोक्त सारे कर्मों के फल एक बार के पुरुषोत्तम स्नान से प्राप्त हो जाते हैं। सच पूछिए तो मैं कई अरब कल्पों में भी इसके गुणों का वर्णन नहीं कर पाऊँगा।

" न हि गत्वा निवर्तन्ते पुरुषोत्तमपूजकाः ।
पुरुषोत्तमभक्तानां नापराधः कदाचन ॥
जायते दुर्भगा दुष्टा अस्मिन् दानादिवर्जिताः।
तद्भक्तकामनादाने न विलम्बे कदाचन ॥
नाचरिष्यन्ति ये धर्म कुम्भीपाके पतन्ति ते । द्वादशाब्दसहस्त्रेषु गंगास्नानेन यत्फलम् ॥
आगोनैश्च यत्पुण्यं समानेन तत्समम्।
नाहं वक्तुं समर्थोस्मि कल्पकोटिशतैः फलम् ॥"

पाण्डवों ने जो अनेक दुख भोगे उसका कारण यह था कि वन में रहते समय उन्होंने अधिमास की पूजा नहीं की। द्रौपदी पूर्व जन्म में एक सुकटाक्षी, सुन्दरी कन्या थी और विवाह के पूर्व ही माता पिता से हीन हो गयी। उसे पति नहीं मिल रहा था। दुर्वासा ने कहा कि हे सुन्दरी! अधिमास में एक बार किसी तीर्थ में नहा लेने से सारे पाप भस्म हो जाते हैं और सब कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। अन्य व्रतों, यज्ञ, दानों, पवित्र मासों, कालों, पर्वों और वेदशास्त्र में कथित साधनों में इतना पुनीत अन्य कोई नहीं है। गंगा गोदावरी में बारह सहस्र वर्षों तक लगातार स्नान करने से जो पुण्य मिलता है वह पुरुषोत्तम मास में केवल एक बार कहीं नहा लेने से प्राप्त हो जाता है इसलिए तुम पतिप्राप्ति के लिए यही करो। कन्या बोली कि महात्मन्! शंकर, पार्वती, गणेश आदि देव तथा कार्तिक-माप आदि पुनीत मास जो नहीं दे पाते वह यह लोकनिन्दित मलिन मास कैसे दे देता है? आपका यह कथन मुझे रुचता नहीं। यह सुन कर कुपित दुर्वासा बोले कि इस कुशंका का दुष्फल तुम अग्रिम जन्म में भोगोगी। इसके बाद कुमारी ने ग्रीष्मऋतु में पंचाग्नि का सेवन करते हुए तथा शीतकाल में पानी में बैठ कर कई सहस्र वर्षों तक घोर तप करते हुए शिव की आराधना की शिव प्रकट हुए तो उसने पाँच बार 'पतिं देहि' कहा। शिव बोले कि तुम्हें पाँच पति मिलेंगे। कन्या घबराने लगी तो शिव ने बताया कि तुमने दुर्वासा के सामने मलमास की उपेक्षा की थी। उसी का यह फल है। दुःशासन ने इसी कारण सभा में उसके केश खींचे और कटुवचन कहे। ब्रह्मा ने वेदों में कथित सब शुभ साधनों को एक और और पुरुषोत्तम मास को दूसरी ओर रखा तो वेदोक्त साधन ऊपर टैंग गये।

" पुरुषोत्तममासस्य यस्त्वयानादरः कृतः ।
तस्मात् पञ्च भविष्यन्ति पतयस्तव सुन्दरि ॥
यो वै निन्दति तं मासं यात्यसौ घोररौरवम् ।
वयं सर्वेऽपि गीर्वाणाः पुरुषोत्तमसेविनः ॥
तोलयामास लोकेश एकतः पुरुषोत्तमम्।
लघुन्यन्यानि जातानि गुरुपुरुषोः ॥"

Address

Varanasi

Telephone

+919685742759

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when ज्योतिष विज्ञान posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to ज्योतिष विज्ञान:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram