04/12/2025
सुख-दुख किसे कहते है और उनसे निवृत्ति कैसे हो?
वास्तव में सुख-दुख हैं नहीं। सब इस बात पर निर्भर है कि हम कहाँ हैं, किस ओर और भावदशा में हैं। जो जैसा है उसे वैसा ही देख पाएँ तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों।
वैसे आम भाषा में सुख और दुःख है क्या? कुछ भी हमारे मन के अनुकूल हो जाए तो सुख हो गया और मन के विरुद्ध हो गया तो दुख हो गया। बाकी कुछ है नहीं सुख-दुख। यह सब हमारे बनाए हुए हैं।
चलिए इसे समझाने के लिए एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ। एक कुम्हार था उसकी दो लड़कियाँं थीं। उन दोनों का पास के ही गाँव में विवाह कर दिया था।
एक लड़की के यहाँ खेती का काम था और दूसरी के यहाँ मिट्टी के बर्तन बनाने का काम-धंधा था।
एक दिन कुम्हार लड़कियों से मिलने के लिए गया। पूछा, "बेटी क्या ढंग है? पिता जी खेती सूख रही है। अगर पाँच-दस दिनों में वर्षा नहीं हुई तो फिर कुछ नहीं होगा।
वहाँ से वह दूसरी लड़की के यहाँ गया और पूछा तो वह कहने लगी पिता जी बर्तन बनाकर सूखने के लिए रखे हैं अगर पाँच-दस दिनों में वर्षा हो गई तो सब मिट्टी हो जाएगा।
अब राम जी क्या करें तो क्या करें बताओ? एक के यहाँ वर्षा होने से सुख और दूसरे के यहाँ वर्षा होने से दुख है। जिसके यहाँ वर्षा होने से सुख है उसको वर्षा न होने से दुख है।
तो समझ आ गया होगा कि दरअसल, यह सुख-दुख क्या है। सब मन के भाव हैं। अपने बनाए हुए हैं। जबकि वर्षा हो जाए अथवा वर्षा न हो यह हमारे हाथ में तो है नहीं। फिर क्यों सुखी-दुखी होना। जो हो जाए उसमें प्रसन्न रहो। जो होना होगा वह होकर रहेगा।
लेकिन, इतनी सी बात समझने में भी या इस भाव दशा में आने में भी इंसान पूरा जीवन लगाकर भी नहीं आ पाता। महादेव 🙏🏻
#अंतर्मन