20/03/2024
क्या आत्मा ज्ञान अर्जित और संरक्षित कर सकती है ?
आत्मज्ञानी भाग 2
क्या आत्म ज्ञान किताबो से पाया जा सकता है कितना आसान है यह प्राप्त करना और इसके होने के बाद क्या होता है यह समझते है
किताबो में हर एक संत महात्मा ने एक ही बात कही है जो मैं पिछली पोस्ट में बताया हु लेकिन उन बातो को पढ़ के जान लेना और वह खुद में होना क्या अंतर है इसे सामान्य स्वरूप में समझे तो यही है की आत्मज्ञानी को सब ज्ञात होता है और जो पढ़ के समझ लेते है उनकी बुद्धि में वे बाते नही हो सकती है वे कपोल कल्पना में घूमते है की उनको ज्ञात हो गया की वो आत्म ज्ञानी है।
वो घूम घूम कर बताते है अपना ज्ञान लोगो को देते है जबकि ज्ञान उतना ही देते है जितना वे पढ़े होते है उससे अधिक नही जबकि आत्मज्ञानी को तो अन्नत ज्ञान होता है वह सारी बाते समझता है जानता है और करता है।
यदि सामान्य रूप से समझा जाए तो आत्मज्ञान जब कुंडलिनी शक्ति पूर्ण जागृत हो जाती है उसके भी बहुत उपर उठने के बाद ही आता है किसी को बोल दिया की मुझे ज्ञान है तो ज्ञान थोड़े हो जाएगा।
जैसे आत्मा ना जलती है न पानी में भीगती है वैसे ही आत्मज्ञानी का शरीर भी हो जाता है
उदाहरण के रूप में तैलंग स्वामी 1 हफ्ते तक गंगा नदी में अंदर घुस के रहे थे न उनको स्वास लेने की समस्या हुई न ही अन्य कोई समस्या वो आत्मज्ञानी थे
लहारी महाशय एक स्थान से दूसरे स्थान पर पल भर में चले जाते थे वह भी अपने शरीर के साथ ही क्युकी आत्मा जो परमात्मा का अंश है हर जगह रहती है।
ऐसे एक नही कई संत महात्मा रह चुके है संसार में।
तो आत्मा का ज्ञान अर्जित करने के लिए एक मात्र मार्ग है साधना का साधना करते रहिए एक समय आएगा की वह आपके अपने शरीर में ज्ञान प्रदान करेगी फिर आपका मन नही होगा की आप किसी को बताए बस यदि उस परमात्मा के आज्ञा अनुसार ही आप कर्म करेंगे
इस आत्मज्ञान को प्राप्त कर लेने के बाद यह आपको हर तरह से संरक्षित करती है न आपकी उम्र बढ़ती है न शरीर का नाश होता है और धीरे धीरे आप आगे बढ़ते चले जाते है।
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