Dr. Dinesh Kumar

Dr. Dinesh Kumar physician by work ,poet by passion

सोचता है यूं तलबगार मेरा,इतना खुश क्यूँ बीमार मेरानामुमकिन है जुदा हो पानायूं उलझा  मिजाजे यार मेराहथेलियों पर उगा लिए ह...
10/09/2023

सोचता है यूं तलबगार मेरा,
इतना खुश क्यूँ बीमार मेरा

नामुमकिन है जुदा हो पाना
यूं उलझा मिजाजे यार मेरा

हथेलियों पर उगा लिए हैं कांटे
संभाले रक्खेगा वो दस्तार मेरा

हार जायेगें मुझसे लड़़ने वाले
सिर्फ मोहब्बत है हथियार मेरा

कभी खत्मशुद न हो मेरे मौला
ऐसा बना के रख ऐतबार मेरा

बहोत जख्म खाये हैं दिलवर से
मोहब्बतों वाला है गुनहगार मेरा

जिस रात मिला था खत तेरा
नहीं था मुझ पर इख्तियार मेरा

करनी पड़ेगी अंधेरे में हमसफरी
जुगनुओं सा रहेगा किरदार मेरा

भले ओढ़ी है गम और तन्हाई
पर मुस्कराना है कारोबार मेरा
@डा.दिनेश..25.6.22

14/08/2023

एक ग़ज़ल

ज्यूं हुई मुकम्मल

आपके हवाले ❤️❤️❤️,,

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