26/10/2025
आज डॉक्टर होना किसी पाप से कम नहीं। एक तरफ़ आपातकालीन वार्ड में जनता आपके कॉलर पकड़ती है, बाहर अफसर आपको फटकार लगाता है, और ऊपर से नेता आपको “सेवक” कहकर उपदेश देता है — “जनता की सेवा करो डॉक्टर साहब, भगवान हो तुम।”
बस फर्क इतना है कि भगवान को लोग मंदिर में पूजते हैं, और डॉक्टर को मेडिकल कॉलेज के गेट पर खींच कर अपमानित करते हैं!
पर असली सवाल है — क्या वाकई डॉक्टरों की ये हालत दूसरों ने बनाई है?
शायद नहीं… शायद हमने खुद की सर्जरी खुद ही कर डाली है!
आज हमारे समाज में एकता की नसें पहले ही काटी जा चुकी हैं।
सीनियर डॉक्टर जूनियर को इंसान नहीं, “इंटर्न” समझते हैं — जैसे कोई मुफ्त का मजदूर मिल गया हो।
जूनियर डॉक्टर अपने सीनियर्स को देखकर यही सीखते हैं कि “कैसे कोई काम किए बिना भी अफसरों के पैरों में जगह बनाई जाए।”
और फिर वही चक्र चलता रहता है — हर कोई अपने छोटे को दबाता है और बड़े के जूते चमकाता है।
आईएएस अफसरों की बात करें तो वे डॉक्टरों को अपना “नौकर” समझते हैं —
मीटिंग में बुलाते हैं, झिड़क देते हैं, और फिर फोटो खिंचवाकर बोलते हैं — “स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की दिशा में कदम।”
राजनीतिज्ञों का तो कहना ही क्या!
चुनाव आते हैं तो डॉक्टर को “जीवनदाता” कहते हैं,
चुनाव के बाद वही डॉक्टर “भ्रष्टाचार का कारण” बन जाता है।
जनता की हालत भी कम दिलचस्प नहीं।
जिस डॉक्टर ने रातभर खड़े होकर उसकी जान बचाई,
अगले दिन वही मरीज सोशल मीडिया पर लिखता है — “सरकारी डॉक्टर काम नहीं करते।”
शायद जनता भूल गई है कि डॉक्टर भी इंसान हैं, कोई मशीन नहीं!
पर इस पूरी त्रासदी का सबसे दुखद अध्याय यह है कि —
डॉक्टर खुद डॉक्टर का साथ नहीं दे रहा।
कोई किसी के समर्थन में खड़ा नहीं होता, जब तक खुद पर संकट न आ जाए।
किसी का ट्रांसफर हो जाए तो बाकी डॉक्टर कॉफी पीते हुए चर्चा करते हैं —
“अच्छा हुआ, बहुत सिर उठा रहा था।”
ऐसी आत्मघाती सोच से कैसे उम्मीद की जाए कि कोई IAS या नेता हमें इज़्ज़त देगा?
डॉक्टर अब मरीजों से कम, और एक-दूसरे से ज़्यादा लड़ता है।
कहीं Group-1 और Group-2 डॉक्टरों में ठनती है – मानो दोनों ने अलग-अलग हिप्पोक्रेटिक ओथ ली हो।
पेरिफेरी वाले डॉक्टर कहते हैं – “हम ही असली योद्धा हैं, धूप में जलते हैं!”
और मेडिकल कॉलेज वाले मुस्कराते हैं – “हम ही विज्ञान के मंदिर के पुजारी हैं!”
स्पेशलिस्ट और नॉन-स्पेशलिस्ट में तो मानो ठंडा युद्ध चल रहा है —
एक कहता है “तुम्हें क्या पता सर्जरी क्या होती है”, दूसरा बोलता है “तुम्हें क्या पता मरीज संभालना क्या होता है।”
फिर आता है General vs OBC vs SC/ST का महाभारत —
जहाँ हर कोई खुद को “असली पीड़ित” और दूसरों को “अनुचित लाभार्थी” बताने में जुटा है।
हम खुद को ही तो गिरा रहे हैं।
जिस दिन डॉक्टर एकजुट हो जाएंगे,
ना कोई अफसर हमें झिड़क सकेगा,
ना कोई नेता हमें नचा सकेगा,
और ना ही कोई जनता हमें अपमानित कर पाएगी।
पर तब तक…
डॉक्टर साहब, अपनी स्टेथोस्कोप संभालिए,
क्योंकि मरीज कम और “मनोवैज्ञानिक प्रहार” ज़्यादा मिलने वाले हैं।
डॉ कपिल देवड़ा
ब्यावर