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Significant epidemics & pandemics in Human History
13/04/2020

Significant epidemics & pandemics in Human History

CORONAVIRUSAverage Day-to-Day Symptoms
01/04/2020

CORONAVIRUS

Average Day-to-Day Symptoms

 (COVID-19) is an infectious disease caused by severe acute respiratory syndrome Coronavirus 2 (SARS-CoV-2).  include fe...
26/03/2020

(COVID-19) is an infectious disease caused by severe acute respiratory syndrome Coronavirus 2 (SARS-CoV-2).
include fever, cough, and shortness of breath. Muscle pain, sputum production, diarrhea, and sore throat are less common. While the majority of cases result in mild symptoms, some progress to pneumonia and multi-organ failure. The virus is typically spread during close contact and via respiratory droplets produced when people cough or sneeze. It may also spread when one touches a contaminated surface and then their face. It is most contagious when people are symptomatic, although spread may be possible before symptoms appear. The virus can live on surfaces up to 72 hours. Time from exposure to onset of symptoms is generally between two and fourteen days, with an average of five days. The standard method of diagnosis is by reverse transcription polymerase chain reaction (rRT-PCR) from a nasopharyngeal swab. The infection can also be diagnosed from a combination of symptoms, risk factors and a chest CT scan showing features of pneumonia.
Recommended measures to prevent infection include frequent hand washing, social distancing( maintaining physical distance from others, especially from those with symptoms), covering coughs and sneezes with a tissue or inner elbow, and keeping unwashed hands away from the face. The use of masks is recommended for those who suspect they have the virus and their caregivers, but not for the General public, although simple cloth masks may be used by those who desire them. Quarantine of infected people and at-risk populations.
There is no vaccine or specific antiviral treatment for COVID-19. Management involves treatment of symptoms, supportive care, isolation, and experimental measures.

The end of Coronavirus predicted according to Vedic Astrology
21/03/2020

The end of Coronavirus predicted according to Vedic Astrology

 #कोरोना के प्रकोप के कारण  #सेनीटाइजर की  #ब्लेकमार्केटिंग हो रही है। 90 रु.की बाॅटल 500 रु. तक बिक रही है ।इस ब्लेक मा...
20/03/2020

#कोरोना के प्रकोप के कारण #सेनीटाइजर की #ब्लेकमार्केटिंग हो रही है। 90 रु.की बाॅटल 500 रु. तक बिक रही है ।
इस ब्लेक मार्केटिंग से बचने के लिए आप #फिटकरी का उपयोग कर सकते हैं।

फिटकरी का पानी भी उतना ही प्रभावशाली है जितना कि आधुनिक सॅनिटायजर ।

फिटकरी (हायड्रेटेड पोटॅशियम अ‍ॅल्युमिनियम सल्फेट// K2SO4 Al2(SO4)3.24H2O) का #संक्रमण से बचने के लिए हमारे देश में #परम्परागत रूप से सैंकड़ों सालों से प्रयोग किया जाता रहा है । पहले हमारे नाई संक्रमण से बचाने के लिए शेविंग के बाद अनिवार्य रूप से चेहरे पर फिटकरी की मसाज किया करते थे।
जब आप फिटकरी के पानी से अपने हाथों को धोते हो या स्नान में उपयोग करते हो तब कोई भी #विषाणु ( #वायरस) आपके शरीर पर जिंदा नहीं रह सकता। गरम पानी में फिटकरी डालकर कुल्ले करने से गले और मुंह के विषाणु नष्ट होते हैं।
इसलिए घबराएं नहीं, संक्रमण से बचने के लिए सस्ता,सुलभ विकल्प "फिटकरी" का प्रयोग करें, और ब्लेक मार्केटिंग की #लूट से बचें।
जानकारी लोगों तक पहुँचाने में मदद करें।

#आरोग्यभारती, द्वारा जनहित में जारी

19/03/2020
 #आमलाएकादशीआमलकी रसायन (2020 का अपडेट)आमलकी या आँवला एक अति महत्वपूर्ण द्रव्य है| वर्ष 2020 तक आमलकी पर विश्व के सर्वश्...
06/03/2020

#आमलाएकादशी
आमलकी रसायन (2020 का अपडेट)

आमलकी या आँवला एक अति महत्वपूर्ण द्रव्य है| वर्ष 2020 तक आमलकी पर विश्व के सर्वश्रेष्ठ जर्नल्स में 2218 शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं| इसके अलावा इसमें पाये जाने वाले विविध सेकेंडरी मेटाबॉलाइट्स पर प्रकाशित शोध अलग है| आयुर्वेद के रसायन ऐसे द्रव्य हैं जो, समकालीन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने पर न्यूरोनल, एंडोक्राइनल और इम्यून सिस्टम को पुनर्जीवित करते हैं और बुढ़ापे को रोकने, युवावस्था को पुनर्स्थापित स्थापित करने, शारीरिक एवं मानसिक शक्ति को सुदृढ़ करने और रोग प्रतिरोध को क्षमता में वृद्धि कर बीमारियों को रोकने में प्रभावी हैं| संहिताओं की दृष्टि से देखें आयुर्वेद के रसायन दीर्घ-आयु, स्मरण-शक्ति, मेधा, आरोग्य, तरुणाई, चमकदार शरीर, मोहक रंग, उदार-स्वर, शरीर और इन्द्रिय में परम बल, विलक्षण वाणी, शिष्टाचार, कान्ति आदि प्राप्त करने का उपाय है (दीर्घमायुः स्मृतिं मेधामारोग्यं तरुणं वयः। प्रभावर्णस्वरौदार्यं देहेन्द्रियबलं परम्।। वाक्सिद्धिं प्रणतिं कान्तिं लभते ना रसायनात्। लाभोपायो हि शस्तानां रसादीनां रसायनम्।। --च.चि.,1.7-8)|

वैज्ञानिक सन्दर्भ में रसायनों की उपयोगिता और प्रभाविता को आमलकी रसायन पर हुई शोध के माध्यम से समझा जा है| सबसे पहले तो 5000 से 8000 साल पहले प्राचीन भारतीय महर्षि-वैज्ञानिकों आत्रेय और उनके शिष्य अग्निवेश ने आमलकं वयःस्थापनानाम् श्रेष्ठम् (च.सू.25.40) का निष्कर्ष दिया है| बाद के काल में आचार्य वाग्भट ने इसी वाक्य को वयसः स्थापने धात्री (अ.हृ.उ. 40.56) कहकर दोहराया है। तात्पर्य यह है कि आमलकी या आँवला आयु को स्थिर करने वाले द्रव्यों में श्रेष्ठतम है। आयु-आधारित व्याधिजनन या एज-रिलेटेड-पैथोजेनेसिस समकालीन विश्व की सबसे गंभीर समस्या है जिससे बायो-मेडिकल साइंस अभी तक हल नहीं कर सका है। आमलकी रसायन से बढ़ती उम्र के बावज़ूद शरीर में आयु-आधारित-व्याधिजनन या तो रुक जाता है या गति धीमी हो जाती है।

उम्र-आधारित रोगजनन का एक प्रमुख कारण डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म में गड़बड़ी होना माना जाता है। जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाये जाने वाले तंतुनुमा अणु को डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड या डी.एन.ए. कहा जाता है। इसी में अनुवांशिक कोड निहित रहता है। जैसे जैसे डी.एन.ए. डैमेज का बोझ बढ़ता जाता है, शरीर बुढ़ापे की ओर बढ़ता जाता है। इस कारण अनेक समस्यायें जैसे कैंसर, न्येरोडीजेनरेशन और बढ़ती उम्र के कारण होने वाली अनेक व्याधियां विकसित हो जाती हैं। शरीर की कोशिकाओं द्वारा डी.एन.ए. डैमेज के संकेत प्राप्त करना और टूट-फूट की मरम्मत करने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है। इसीलिये बढ़ती उम्र में अनेक रोग लग जाते हैं। तो क्या रसायन के रूप में आमला बढ़ती उम्र के लोगों में डी.एन.ए. रिपेयर मैकेनिज्म की गति को बढ़ा सकता है? इस विषय में कई अध्ययनों से यह सिद्ध होता है कि रसायन औषधियाँ डी.एन.ए. रिपेयर की गति को बढ़ाकर बुढ़ापा आने की गति को धीमा कर देती हैं। हाल में हुये एक क्लीनिकल ट्रायल (जर्नल ऑफ़ एथनोफार्माकोलॉजी, 2016, 191: 387-397) में पाया गया कि आमलकी रसायन के प्रयोग से डी.एन.ए. स्ट्रैंड में तोड़फोड़ की गति कम होती है तथा रिपेयर मैकेनिज्म तेज हो जाती है। यह रसायन सुरक्षित भी पाया गया है। एक अन्य अध्ययन में (जर्नल ऑफ़ आयुर्वेदा एंड इंटीग्रेटिव मेडिसिन, 2017, 8:105-112), जो 45-60 वर्ष के लागों के मध्य किया गया, पाया गया है कि आमलकी रसायन का प्रयोग रक्त की पेरिफेरल ब्लड मोनोन्यूलियर सेल्स में टीलोमीयर की लम्बाई में बदलाव किये बिना टीलोमेरेज क्रियात्मकता को बढ़ा देता है। चूंकि इससे टीलोमियर के क्षरण में कमी आती है, अतः हितायु-सुखायु या हैल्थस्पान में बेहतरी होती है।

वर्तमान समय में न्यूरोलॉजिकल विकार जैसे मिर्गी, अवसाद, टार्डीव डिस्केनेसिया और तनाव, और न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार जैसे अल्जाइमर रोग, पार्किंसंस रोग, मनोभ्रंश और हंटिंगटन-बीमारी एक भारी समस्या है। मौजूदा आधुनिक चिकित्सा इसमें प्रायः सफल नहीं है| आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयुक्त आमलकी पर किये गये इन-वाइवो और इन-विट्रो अध्ययनों में आमलकी में एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-हाइपरलिपिडेमिक और एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक प्रभावों के पर्याप्त प्रमाण मिले हैं| इसके साथ ही अनेक न्यूरोलॉजिकल विकारों में आमला उपयोगी पाया गया है (मेटाबोलिक ब्रेन डिजीज, 2019, 34: 957–965)।

आमलकी पर नया क्लिनिकल ट्रायल मेटाबोलिक सिंड्रोम के विरुद्ध एक नया रास्ता दिखाता है| चयापचय समस्या या मेटाबोलिक सिंड्रोम वाले व्यक्तियों में प्रायः एंडोथेलियल डिसफंक्शन पाया जाता है जो एथेरोस्क्लेरोसिस की शुरुआत और वृद्धि का कारक बनता है। मेटाबोलिक सिंड्रोम के प्राथमिक प्रबंधन में दवाओं के साथ जीवन शैली में सुधार और निदान-परिवर्जन शामिल हैं| 59 लोगों के मध्य किये गए एक क्लिनिकल ट्रायल से ज्ञात हुआ है कि आमलकी के जलीय एक्सट्रैक्ट की 500 मिलीग्राम मात्रा दिन में दो बार लेने से एंडोथेलियल फंक्शन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, सिस्टमिक सूजन और लिपिड प्रोफाइल में महत्वपूर्ण सुधार हुआ| इस प्रकार चयापचय सिंड्रोम के प्रबंधन में वैद्यों की सलाह से ली गयी आयुर्वेदिक चिकित्सा, जिसमें जीवन-शैली में सुधार और आमलकी का एकल औषधीय प्रयोग शामिल है, उपयोगी हो सकती है (बीएमसी कॉम्प्लीमेंटरी एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन, 2019, 19: 97)। कोलेस्ट्रोल व ट्राइग्लीसराइड साथ-साथ कम करने वाली दवा कम मिलती है| आमलकी उनमें एक है (बीएमसी कॉम्प्लीमेंटरी एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन, 2019, 19: 27)| आंवला के सेवन से रक्त की तरलता में महत्वपूर्ण सुधार, वॉन विलब्रांड फैक्टर में कमी, 8-हाइड्रॉक्सी-2 डी-डीऑक्सीगोनोसिन और थ्रोम्बिन बायोमार्कर के साथ-साथ एचडीएल में सुधार होना पाया गया है। यह ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस व एलडीएल-कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम करता है (कंटेम्पररी क्लिनिकल ट्रायल्स कम्युनिकेशन्स, 2020, 17: 100499)।

आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से प्रमाणों के दो अलग-अलग समूह देखना आवश्यक है। प्रथम यह कि कोई भी द्रव्य जो जीवन को सुरक्षित रख सकता है, उसमें दो गुण होना अनिवार्य है: पहला, फ्री-रेडीकल स्केवेंजिंग के द्वारा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करना एवं, दूसरा, एन्टीइन्फ्लेमेटरी गुण का होना। फ्री-रेडीकल स्केवेंजिंग एवं एन्टीइन्फ्लेमेटरी गुण के सन्दर्भ में आमलकी उच्चकोटि का रसायन एवं एडॉप्टोजेन होने के कारण दोनों ही प्रभाव पर्याप्त आधुनिक शोध में सिद्ध हुये हैं। बढ़ती उम्र की गैरसंचारी बीमारियों जैसे कैंसर, डायबिटीज हृदय रोग, अपर श्वसन तंत्र के रोग, मानसिक रोग एवं इन रोगों के कारण होने वाली द्वितीयक-जटिलताओं को रोकने के प्रमाण भी हैं। इस दिशा में विश्व भर में आमलकी पर गंभीर अध्ययन हुये हैं। मुख्य रूप से प्रयोगशाला-उपकरणों के द्वारा इन-वाइट्रो तथा विभिन्न प्रजातियों के प्राणियों में इन-वाइवो अध्ययनों पर 300 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन सबसे सिद्ध हुआ है कि आमलकी में एंटीऑक्सीडेंट, इम्यूनोमोड्यूलेटर, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रेटेक्टिव, रीनोप्रोटेक्टिव, एंटीडायरियल, एंटीएमेटिक, एन्टीकैंसर, एन्टीडायबेटिक, एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीहाइपरटेंसिव, न्यूरोप्रोटेक्टिव, एंटीएथीरोस्क्लीरोटिक, एन्टीवायरल, ऐन्टीप्रोलीफेरेटिव, एन्टीपायरेटिक, एनलजेसिक, एन्टीमाइक्रोबियल, एन्टीएलर्जिक, एन्टीहापरलिपिडेमिक, एंटीहाइपरथायरॉयडिज्म, एल्डोज रिडक्टेज इनहिबिटर, प्रोटीन काइनेज इनहिबिटर, गेस्ट्रोप्रोटेक्टिव, स्मृतिवर्धक, एन्टीअल्जीमर, एन्टीकेटरेक्ट आदि गुण हैं।

आयुर्वेद का ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं जिसने आमलकी को एक उच्चकोटि का भोजन, प्रभावी रसायन और महत्वपूर्ण औषधि के रूप में मान्यता नहीं प्रदत्त की हो। चरकसंहिता के अनुसार आँवला में लवण रस के अतिरिक्त सभी रस हैं। अम्लरस-प्रधान, रुक्ष, मधुर, कषाय है। परम कफ-पित्त नाशक, वृष्य या पुरुषत्व-वर्धक, रसायन, तथा गुल्म, उदर, ज्वर, पांडु, अतिसार, प्रमेह, कामला, कृमि आदि रोगों के विरुद्ध उपयोगी है। सुश्रुतसंहिता के अनुसार रक्त-पित्तशामक, नेत्र ज्योति बढ़ाने वाला, पुरुषत्व-वर्धक रसायन है। भावप्रकाश निघंटु के अनुसार यह पुरूषत्व बढ़ाने वाला, रसायन एवं रक्त-पित्त-हर, गुल्महर और प्रमेहहर है। धन्वन्तरि निघंटु के अनुसार पुरूषत्व-वर्धक, रसायन, ज्वरहर, तथा स्त्रीरोगों में लाभकारी है। राजनिघंटु के अनुसार आमलकी रक्त-पित्त-हर है। इस सम्बन्ध में भावप्रकाश में वर्णित गुणधर्म देखना उपयोगी है (पूर्वखण्ड 6.2.39-40): हरीतकीसमं धात्रीफलं किन्तु विशेषतः। रक्तपित्तप्रमेहघ्नं परं वृष्यं रसायनम्।। हन्ति वातं तदम्लत्वात्पित्तं माधुर्यशैत्यतः। कफं रूक्षकषायत्वात्फलं धात्र्यास्त्रिदोषजित्।। आँवला हरीतकी की भांति है, विशेषकर रक्त-पित्त-प्रमेहहर, पुरुषत्ववर्धक व रसायन है। अपने अम्ल रस व शीत वीर्य द्वारा वात का शमन और शुष्कता और कषाय के द्वारा कफ शमन करता है। इस प्रकार तीनों दोषों के शमन में विजयी होता है। आचार्य वाग्भट ने आमलक रसायन का वर्णन करते हुये लिखा है (अ.हृ.उ. 39.149): धात्रीरसक्षौद्र सिताघृतानि हिताशनानां लिहतां नराणाम्। प्रणाशमायान्ति जराविकारा ग्रन्था विशाला इव दुर्गृहीताः।। आमले का रस, शहद, खण्ड, तथा घी मिलाकर प्रतिदिन चाटते रहने से जरा-जन्य-विकार ठीक उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे बेमन से पढ़े गये ग्रन्थ भूल जाते हैं। इसी प्रकार आँवले का वाजीकारक, अर्थात वृष्य या पुरुषत्व-वर्धक योग भी निर्दिष्ट है (अ.हृ.उ. 40.27): कृष्णाधात्रीफलरजः स्वरसेन सुभावितम्। शर्करामधुसर्पिर्भिर्लीढ्वा योऽनु पयः पिबेत्।। स नरोऽशीतिवर्षोऽपि युवेव परिहृष्यति। जैसा कि आचार्य सुश्रुत ने भी कहा है (सु.चि. 26.24-25): एवमामलकं चूर्णं स्वरसेनैव भावितम्। शर्करामधुसर्पिर्भिर्युक्तं लीढ्वा पयः पिबेत्।। एतेनाशीतिवर्षोऽपि युवेव परिहृष्यति। तात्पर्य यह है कि आँवला स्वरस से अच्छी तरह भावित आँवला-चूर्ण में, खण्ड, मधु व घी मिलाकर जो व्यक्ति लेकर बाद में दूध पीता है, वह अस्सी साल की उम्र में भी युवा की तरह आनंदित होता है।

इन सब तथ्यों के कारण आँवले को अपने भोजन का अंग बनाने या आमलकी रसायन का सेवन करने के लिये आयुर्वेदाचार्यों की सलाह लीजिये| आँवला अकेला ऐसा द्रव्य है जो सर्वश्रेष्ठ आहार, रसायन व औषधि है| आयुर्वेदाचार्यों की सलाह से इसका प्रयोग जीवन रक्षण में सहायक हो सकता है| और हाँ, आमले के पौधे घर और खेत-खलिहान में लगाना न भूलें|
साभार
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं|)

29/08/2019

:- A classical & well established Ayurveda therapy that involves gently pouring of any medicated liquids ( eg. oil, ghee, milk, butter milk etc) on the forehead from a specific height & for a specific period continuously & rhythmically allowing the liquid to run through the scalp & into the hair.
:- The benefits of Shirodhara include treatment of sleep problems, memory loss, poor concentration, chronic headaches, stress, depression, mental tension, hypertension, vision, hearing problems, nasal problems, ageing, premature graying of hair or hairfall.

 #साँप_के_काटने_का_ईलाज_जरूर_पढ़ें, पता नहीं कब आपके काम आ जाए : दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप य...
30/06/2019

#साँप_के_काटने_का_ईलाज_जरूर_पढ़ें,
पता नहीं कब आपके काम आ जाए : दोस्तो सबसे पहले साँपो के बारे मे एक महत्वपूर्ण बात आप ये जान लीजिये । कि अपने देश भारत मे 550 किस्म के साँप है । जैसे एक है है है ।

ऐसी 550 किस्म की साँपो की जातियाँ हैं । इनमे से मुश्किल से 10 साँप है जो जहरीले है सिर्फ 10 । बाकी सब non poisonous है। इसका मतलब ये हुआ 540 साँप ऐसे है जिनके काटने से आपको कुछ नहीं होगा ।। बिलकुल चिंता मत करिए । लेकिन साँप के काटने का डर इतना है (हाय साँप ने काट लिया ) और कि कई बार आदमी heart attack से मर जाता है । #जहर से नहीं मरता से मर जाता है । तो डर इतना है मन मे । तो ये डर निकलना चाहिए । वो डर कैसे निकलेगा ??? जब आपको ये पता होगा कि 550 तरह के साँप है उनमे से सिर्फ 10 साँप जहरीले हैं । जिनके काटने से कोई मरता है । इनमे से जो सबसे जहरीला साँप है उसका नाम है ।
viper । उसके बाद है karit इसके बाद है viper और एक है cobra । king cobra जिसको आप कहते है काला नाग ।। ये 4 तो बहुत ही खतरनाक और जहरीले है इनमे से किसी ने काट लिया तो 99 % chances है कि death होगी । लेकिन अगर आप थोड़ी होशियारी दिखाये तो आप #रोगी को बचा सकते हैं

आपने देखा होगा साँप जब भी काटता है तो उसके दो दाँत है जिनमे जहर है जो शरीर के मास के अंदर घुस जाते हैं । और खून मे वो अपना जहर छोड़ देता है । तो फिर ये जहर ऊपर की तरफ जाता है । मान लीजिये हाथ पर साँप ने काट लिया तो फिर जहर दिल की तरफ जाएगा उसके बाद पूरे शरीर मे पहुंचेगा । ऐसे ही अगर पैर पर काट लिया तो फिर ऊपर की और तक जाएगा और फिर पूरे शरीर मे पहुंचेगा । कहीं भी काटेगा तो दिल तक जाएगा । और पूरे मे खून मे पूरे शरीर मे उसे पहुँचने मे 3 घंटे लगेंगे ।

मतलब ये है कि रोगी 3 घंटे तक तो नहीं ही मरेगा । जब पूरे दिमाग के एक एक हिस्से मे बाकी सब जगह पर जहर पहुँच जाएगा तभी उसकी death होगी otherwise नहीं होगी । तो 3 घंटे का time है रोगी को बचाने का और उस तीन घंटे मे अगर आप कुछ कर ले तो बहुत अच्छा है । एक medicine आप चाहें तो हमेशा अपने घर मे रख सकते हैं बहुत सस्ती है मे आती है । उसका नाम है (N A J A ) । homeopathy medicine है किसी भी homeopathy shop मे आपको मिल जाएगी । और इसकी है 200 । आप दुकान पर जाकर कहें NAJA 200 देदो । तो दुकानदार आपको दे देगा । ये 5 मिलीलीटर आप घर मे खरीद कर रख लीजिएगा 100 लोगो की जान इससे बच जाएगी । और इसकी कीमत सिर्फ 50 रुपए है । इसकी बोतल भी आती है 100 मिलीग्राम की 150 से 200 रुपए की उससे आप कम से कम 10000 लोगो की जान बचा सकते हैं जिनको साँप ने काटा है

और ये जो medicine है NAJA ये दुनिया के सबसे खतरनाक साँप का ही poison है जिसको कहते है क्रैक । इस साँप का poison दुनिया मे सबसे खराब माना जाता है । इसके बारे मे कहते है अगर इसने किसी को काटा तो उसे भगवान ही बचा सकता है । medicine भी वहाँ काम नहीं करती उसी का ये poison है लेकिन delusion form मे है तो घबराने की कोई बात नहीं । आयुर्वेद का सिद्धांत आप जानते है लोहा लोहे को काटता है तो जब जहर चला जाता है शरीर के अंदर तो दूसरे साँप का जहर ही काम आता है । तो ये आप घर मे रख लीजिये ।अब देनी कैसे है रोगी को वो आप जान लीजिए 1 बूंद उसकी जीभ पर रखे और 10 मिनट बाद फिर 1 बूंद रखे और फिर 10 मिनट बाद 1 बूंद रखे ।। 3 बार डाल के छोड़ दीजिये ।बस इतना काफी है । और कि ये दवा रोगी की जिंदगी को हमेशा हमेशा के लिए बचा लेगी । और साँप काटने के एलोपेथी मे जो injection है वो आम अस्तप्तालों मे नहीं मिल पाते । डाक्टर आपको कहेगा इस अस्तपाताल मे ले जाओ उसमे ले जाओ आदि आदि ।।
और जो ये एलोपेथी वालो के पास injection है इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए है । और अगर मिल जाएँ तो डाक्टर एक साथ 8 से -10 injection ठोक देता है । कभी कभी 15 तक ठोक देता है मतलब लाख-डेड लाख तो आपका एक बार मे साफ ।। और यहाँ सिर्फ 10 रुपए की medicine से आप उसकी जान बचा सकते हैं । और injection जितना effective है मैं इस दवा(NAJA) की ये दवा एलोपेथी के injection से 100 गुना (times) ज्यादा effective है ।

तो अंत आप याद रखिए घर मे किसी को साँप काटे और अगर दवा(NAJA) घर मे न हो । फटाफट कहीं से injection लेकर first aid (प्राथमिक सहायता) के लिए आप injection वाला उपाय शुरू करे । और अगर दवा है तो फटाफट पहले दवा पिला दे और उधर से injection वाला उपचार भी करते रहे । दवा injection वाले उपचार से ज्यादा जरूरी है ।।

तो ये जानकारी आप हमेशा याद रखे पता नहीं कब काम आ जाए हो सकता है आपके ही जीवन मे काम आ जाए । या पड़ोसी के जीवन मे या किसी रिश्तेदार के काम आ जाए। तो first aid के लिए injection की सुई काटने वाला तरीका और ये NAJA 200 homeopathy दवा । 10 – 10 मिनट बाद 1 – 1 बूंद तीन बार रोगी की जान बचा सकती है
स्रोत: श्री राजीव दीक्षित

आयुर्वेद में भी होती है सर्जरीभारत में आज भले ही आयुर्वेद लोगों की पहली पसंद न हो, लेकिन एक वक्त था जब यहां एलोपैथी का न...
26/06/2019

आयुर्वेद में भी होती है सर्जरी

भारत में आज भले ही आयुर्वेद लोगों की पहली पसंद न हो, लेकिन एक वक्त था जब यहां एलोपैथी का नाम तक नहीं था। लोग आयुर्वेद से ही सभी तरह का इलाज कराते थे। इसमें सर्जरी भी शामिल थी। ईसा पूर्व छठी सदी (आज से लगभग 2500 साल पहले) में धंवंतरि के शिष्य सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता की रचना की जबकि एलोपैथी में मॉडर्न सर्जरी की शुरुआत 17-18वीं सदी में मान सकते हैं। आयुर्वेदिक सर्जरी से जुड़ी तमाम जानकारी दे रहे हैं डॉ. राजीव पुंडीर

बेशक आयुर्वेद भारत का बहुत ही पुराना इलाज का तरीका है। जड़ी-बूटियों, मिनरल्स, लोहा (आयरन), मर्करी (पारा), सोना, चांदी जैसी धातुओं के जरिए इसमें इलाज किया जाता है। हालांकि कुछ लोग ही इस बात को जानते हैं कि आयुर्वेद में सर्जरी (शल्य चिकित्सा) का भी अहम स्थान है। सुश्रुत संहिता में स्पेशलिटी के आधार पर आयुर्वेद को 8 हिस्सों में बांटा गया है:
1. काय चिकित्सा (मेडिसिन): ऐसी बीमारियां जिनमें अमूमन दवाई से इलाज मुमकिन है, जैसे विभिन्न तरह के बुखार, खांसी, पाचन संबंधी बीमारियां
2. शल्य तंत्र (सर्जरी): वे बीमारियां जिनमें सर्जरी की जरूरत होती है, जैसे फिस्टुला, पाइल्स आदि
3. शालाक्य तंत्र (ENT): आंख, कान, नाक, मुंह और गले के रोग
4. कौमार भृत्य (महिला और बच्चे): स्त्री रोग, प्रसव विज्ञान, बच्चों को होने वाली बीमारियां
5. अगद तंत्र (विष विज्ञान): ये सभी प्रकार के विषों, जैसे सांप का जहर, धतूरा आदि जैसे जहरीले पौधे का शरीर पर पड़ने वाले असर और उनकी चिकित्सा का विज्ञान है।
6. रसायन तंत्र (रीजूवनेशन और जेरियट्रिक्स): इंसानों को स्वस्थ कैसे रखा जाए और उम्र का असर कैसे कम हो।
7. वाजीकरण तंत्र (सेक्सॉलजी): लंबे समय तक काम शक्ति (सेक्स पावर) को कैसे संजोकर रखा जाए।
8. भूत विद्या (साइकायट्री): मनोरोग से संबंधित।

सर्जरी शुरुआत से ही आयुर्वेद का एक खास हिस्सा रहा है ।
महर्षि चरक ने जहां चरक-संहिता को काय-चिकित्सा (मेडिसिन) के एक अहम ग्रंथ के रूप में बताया है, वहीं महर्षि सुश्रुत ने शल्य-चिकित्सा (सर्जरी) के लिए सुश्रुत संहिता लिखी। इसमें सर्जरी से संबंधित सभी तरह की जानकारी उपलब्ध है।

सर्जरी के 3 भाग बताए गए हैं:
1. पूर्व कर्म (प्री-ऑपरेटिव)
2. प्रधान कर्म (ऑपरेटिव)
3. पश्चात कर्म (पोस्ट-ऑपरेटिव)

इन तीनों प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए 'अष्टविध शस्त्र कर्म' (आठ विधियां) करने की बात कही गई है:
1. छेदन (एक्सिजन): शरीर के किसी भाग को काट कर निकालना
2. भेदन (इंसिजन): किसी भी तरह की सर्जरी के लिए शरीर में चीरा लगाना
3. लेखन (स्क्रैपिंग): शरीर के दूषित भाग को खुरच कर दूर करना
4. वेधन (पंक्चरिंग): शरीर के फोड़े से पूय (पस) या दूषितद्रव लिक्विड को सुई से छेद करके निकालना
5. ऐषण (प्रोबिंग): भगंदर जैसी बीमारियों को जांचना। इसमें टेस्ट के लिए धातु के उपकरण एषणी (प्रोब)की मदद ली जाती है।
6. आहरण (एक्स्ट्रक्सन): शरीर में पहुंचे किसी भी तरह के बाहरी पदार्थ को औजार से खींचकर बाहर निकालना, जैसे: गोली, पथरी या दांत
7. विस्रावण (ड्रेनेज): पेट, जोड़ों या फेफड़ों में भरे अतिरिक्त पानी को सुई की मदद से बाहर निकालना
8. सीवन (सुचरिंग): सर्जरी के बाद (शरीर में चोट लगने से कटे-फटे अंग और त्वचा) को वापस उसी जगह पर जोड़ देना

इनके अलावा, घाव कितने तरह के होते हैं, सीवन (घाव सीने या कटे अंगों को जोड़ने) में इस्तेमाल होने वाला धागा कैसा होना चाहिए, सीवन कितने तरह की होती हैं और सीवन का काम किस प्रकार से करें, ये सभी बातें बहुत ही विस्तार से सुश्रुत संहिता मे समझाई गई हैं।
जाहिर है, जब सर्जरी होती है तो इसमें सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स की भी जरूरत होगी। सुश्रुत ने 101 तरह के यंत्रों के बारे में बताया है। विभिन्न प्रकार की चिमटियां (फोरसेप्स) और दर्शन यंत्र (स्कोप्स) शामिल हैं। ताज्जुब की बात है कि सुश्रुत ने चिमटियों का जो वर्णन विभिन्न पशु-पक्षियों के मुंह की आकृति के आधार पर किया था, वे औजार आज भी उसी प्रकार से वर्गीकृत हैं। इन औजारों का उपयोग मॉडर्न मेडिसिन के सर्जन जरूरत के हिसाब से वैसे ही कर रहे हैं, जैसा पहले आयुर्वेद के सर्जन करते थे।
कौन-कौन-सी सर्जरी किन-किन बीमारियों में करनी चाहिए, यह वर्णन भी सुश्रुत संहिता में किया गया है। बड़ी सर्जरी जैसे उदर विपाटन (लेप्रोटमी) किन रोगों में करें और छोटी या बड़ी आंत (स्मॉल या लार्ज इंटस्टाइन) में छेदन (एक्सिजन), भेदन (इंसिजन) करने के बाद उनका मिलान और सीवन (घाव को सीने का काम) किस प्रकार से करें और चीटों का इस्तेमाल कैसे करें, इसके बारे में भी सुश्रुत संहिता में उल्लेख है।

आयुर्वेदिक सर्जरी की खासियत
खून में होने वाली गड़बड़ी को आयुर्वेद में बीमारियों का सबसे अहम कारण माना गया है। इन्हें दूर करने के दो उपाय बताए गए हैं: पहला है, सिर्फ दवाई लेना और दूसरा दवाई के साथ खून की सफाई (रक्त-मोक्षण)। दूषित रक्त को हटाना सर्जरी की एक प्रक्रिया है। इसके लिए आयुर्वेद में खास विधि अपनाई जाती है।

लीच थेरपी
आयुर्वेद में खून की सफाई के लिए जलौकावचरण (लीच थेरपी) का विस्तार से वर्णन किया गया है। जैसे: किस तरह के घाव में जलौका यानी जोंक (लीच) का उपयोग करना चाहिए, यह कितने प्रकार की होती है, जलौका किस प्रकार से लगानी चाहिए और उन्हें किस तरह रखा जाता है, ऐसे सभी सवालों के जवाब हमें सुश्रुत संहिता में मिलते हैं। आर्टरीज और वेन्स में खून का जमना और पित्त की समस्या से होने वाले बीमारी, जैसे: फोड़े, फुंसियों और त्वचा से जुड़ी परेशानियों में लीच थेरपी से जल्दी फायदा होता है।
दरअसल, जलौका दो तरह के होते हैं: सविष (विषैली) और निर्विष (विष विहीन)। चिकित्सा के लिए निर्विष जलौका का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों को देखकर भी पहचाना जा सकता है। निर्विष जलौका जहां हरे रंग की चिकनी त्वचा वाली और बिना बालों वाली होती है। सविष जलौका गहरे काले रंग का और खुरदरी त्वचा वाला होता है। इस पर बाल भी होती हैं। अमूमन निर्विष जलौका साफ बहते हुए पानी में मिलती हैं, जबकि सविष जलौका गंदे ठहरे हुए पानी और तालाबों में पाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि जलौका दूषित रक्त को ही चूसती है, शुद्ध रक्त को छोड़ देती है। जलौका (लीच) लगाने की क्रिया सप्ताह में एक बार की जाती है। इस प्रक्रिया में मामूली-सा घाव बनता है, जिस पर पट्टी करके उसी दिन रोगी को घर भेज दिया जाता है।

प्लास्टिक सर्जरी
प्राचीन काल में युद्ध तलवारों से होते थे और अक्सर योद्धाओं की नाक या कान कट जाते थे। कटे हुए कान और नाक को फिर से किस प्रकार से जोड़ा जाए, इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी सुश्रुत संहिता में दी गई है। इसके लिए संधान कर्म (प्लास्टिक सर्जरी) की जाती थी।
इन्हीं खासियतों की वजह से महर्षि सुश्रुत को 'फादर ऑफ सर्जरी' भी कहा जाता है। फिलहाल आयुर्वेद में प्लास्टिक सर्जरी चलन में बहुत कम है।

क्षार सूत्र चिकित्सा: ब्लड लेस सर्जरी का एक प्रकार
शरीर के कई ऐसे हिस्से हैं जिन पर सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स से सर्जरी नहीं करने की बात कही गई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुदा (एनस) में होने वाली समस्याएं, जैसे: अर्श या बवासीर (पाइल्स) और भगंदर (फिस्टुला) में 'क्षार सूत्र चिकित्सा' का इस्तेमाल बहुत कामयाब रहा है। इस इलाज में मरीज को अपने काम से छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ती क्योंकि कोई बड़ा जख्म नहीं बनता और खून भी नहीं निकलता। यह ब्लडलेस सर्जरी का बेहतरीन उदाहरण है।
यह सच है कि जब से ऐनिस्थीसिया की खोज हुई है, शरीर के किसी भी हिस्से की सर्जरी करना आसान हो गया है, लेकिन एनस जैसी जगहों पर सर्जरी से मिलने वाली कामयाबी को लेकर अभी निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता। यही वजह है कि आयुर्वेद में फिस्टुला या पाइल्स के मामले में सर्जरी इंस्ट्रूमेंट्स (औजारों) की मदद से नहीं बल्कि क्षार (ऐल्कली) की जाती है। क्षार की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह औजार न होते हुए भी किसी अंग को काटने, हटाने की उतनी ही क्षमता रखता है जितना कि कोई सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट।

क्या होते हैं क्षार (ऐल्कली)?
इस काम के लिए कुछ खास औषधीय पौधों का प्रयोग किया जाता है, जैसे: अपामार्ग (लटजीरा), यव, मूली, पुनर्नवा, अर्क
इनमें से जिस भी पौधे का क्षार बनाना हो, उसके पंचांग (पौधे के सभी 5 भाग: जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को सबसे पहले धोकर सुखा लिया जाता है। इसके बाद इनके छोटे-छोटे टुकड़े करके एक बड़े बर्तन में रखकर उसको जला लेते हैं।
जलाने में किसी प्रकार का ईंधन या दूसरी चीजों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। पौधे के टुकड़ों को जला दिया जाता है।
जलने के बाद बनी राख को 8 गुने जल में घोला जाता है। इसके बाद महीन कपड़े से कम से कम 21 बार छानकर उसे तब तक उबाला जाता है जब तक कि पूरा पानी भाप न बन जाए। इसके बाद बर्तन में नीचे जो लाल या भूरे रंग का पाउडर बचता है, उसे ही क्षार कहते हैं। बर्तन से उसे खुरचकर और थोड़ा पीसकर किसी कांच की शीशी में इस तरह से जमा किया जाता है कि उसका संपर्क हवा से पूरी तरह से खत्म हो जाए क्योंकि क्षार हवा की नमी सोखकर अपना असर खो देते हैं।

कितने तरह के क्षार?
क्षार दो तरह के होते हैं। जिनका प्रयोग औषधि के रूप में खाने के लिए किया जाता है उन्हें पानीय (खाने लायक) क्षार कहते हैं। जिनका इस्तेमाल घाव या किसी अंग विशेष पर किया जाता है, उन्हें प्रतिसारणीय (शरीर पर लगाने वाले) क्षार कहते हैं। क्षार सूत्र बनाने के लिए शरीर पर लगाने वाले क्षारों यानी प्रतिसारणीय क्षार का प्रयोग किया जाता है।

क्या होता है क्षार सूत्र और ये कैसे बनाए जाते हैं?
पक्के धागे पर क्षार की लगभग 21 परतें चढ़ाकर जो सूत्र या धागा बनाया जाता है उसे ही क्षार सूत्र कहते हैं। इसका इस्तेमाल सर्जरी में किया जाता है।
क्षार सूत्र बनाने के लिए मुख्य रूप से 4 चीजों की जरूरत पड़ती है:
1. पक्का धागा
2. धागा बांधने के लिए एक फ्रेम
3. औषधियां
4. स्पेशलिस्ट

औषधियां: स्नुही दूध (कैक्टस के पौधे से निकला हुआ लिक्विड), उपरोक्त में से कोई भी क्षार (बेस) और हल्दी पाउडर।
सबसे पहले स्पेशलिस्ट सुबह में स्नुही यानी कैक्टस के कांटेदार पौधे के तने पर चाकू से सावधानीपूर्वक तेज चीरा लगाता है। चीरा लगाते ही तने से दूध निकलने लगता है जिसे कांच की शीशी में इकट्ठा कर लिया जाता है। एक फ्रेम पर धागा कस कर पहले ही रख लिया जाता है। करीब 50 ml दूध में रुई को डुबोकर फ्रेम पर लगे धागे पर 10 बार लगाया जाता है। हर बार दूध लगाने के बाद धागे को धूप में रख कर सुखा लेते हैं, फिर उसी पर दूसरा लेप लगाते हैं। इसके बाद 7 बार दूध लगाकर फिर क्षार के पाउडर को धागे के ऊपर लगा कर सुखा लिया जाता है। अंत में 4 बार दूध, फिर क्षार और हल्दी, तीनों को धागे के ऊपर लगाकर तेज धूप में सुखा लिया जाता है और फिर फ्रेम पर से उतार लिया जाता है। करीब 1 फुट लंबे धागे को काटकर कांच की परखनली में रख लिया जाता है। इस परखनली को अच्छी तरह से सील कर दिया जाता है ताकि उसमें हवा न घुस सके। यह काम विशेषज्ञ सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले दस्ताने पहनकर करता है क्योंकि स्नुही दूध और क्षार काफी तेज होते हैं। इनमें त्वचा (स्किन) को काटने की क्षमता होती है। विकल्प के तौर पर बढ़िया क्वॉलिटी की पॉलिथीन की थैली में भी क्षार सूत्र को अच्छी तरह से सील करके रखा जा सकता है।
आजकल क्षार सूत्र बनाने में काफी प्रगति हुई है। केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र ने आईआईटी, दिल्ली के सहयोग से क्षार सूत्र बनाने की ऑटोमैटिक मशीन तैयार की है, जिसकी सहायता से काफी कम समय में क्षार सूत्र तैयार किए जा सकते हैं।

किन बीमारियों में क्षार सूत्र का इस्तेमाल
क्षार सूत्र का इस्तेमाल अर्श या बवासीर (पाइल्स) और भगंदर (फिस्टुला) जैसी बीमारियों में किया जाता है। यह सर्जरी कहलाती है और इस काम को आयुर्वेदिक सर्जन ही अंजाम देते हैं। अच्छी बात यह है कि इस इलाज में किसी प्रकार की काट-छांट नहीं होती, न ही खून निकलता है।
दूसरी बीमारियां, जिनमें क्षार सूत्र का प्रयोग किया जाता है, वे हैं: नाड़ीवण (साइनस), त्वचा पर उगने वाले मस्से और कील। नाक के अंदर होने वाले मस्से में भी क्षारों का प्रयोग किया जाता है जिससे वे धीरे-धीरे कटकर नष्ट हो जाते हैं। त्वचा पर होने वाले उभार या ग्रंथियों को भी क्षार सूत्र से बांध कर नष्ट किया जा सकता है।

बवासीर में क्षार सूत्र ट्रीटमेंट
बवासीर में गुदा (एनस) में जो मस्से बन जाते हैं, उनकी जड़ को क्षार सूत्र से कसकर बांध दिया जाता है जिससे वे खुद ही सूख कर गिर जाते हैं। ये काम दो प्रकार से होते हैं। मस्से अगर बड़े हैं तो सर्जन एनस के बाहर (बाह्य अर्श या एक्सटर्नल पाइल्स) और अंदर वाले अर्श (इंटरनल पाइल्स) की जड़ों में क्षार सूत्र को बांध देते हैं। लेकिन अगर मस्से की जड़ें छोटी हैं या फिर ज्यादा अंदर की तरफ हैं तो क्षार सूत्र को अर्धचंद्राकार सुई में पिरोकर उसे मस्से की जड़ों के आर-पार करके जड़ की चारों ओर कसकर बांध दिया जाता है। इस काम में लोकल ऐनिस्थीसिया की जरूरत होती है और कभी-कभी स्पाइनल या जनरल ऐनिस्थीसिया की भी। ऐसे में किसी ऐनिस्थीसिया स्पेशलिस्ट की मदद ली जाती है, जिससे क्षार सूत्र बांधने का काम सही तरीके से हो सके और मरीज को दर्द भी न हो।

फिस्टुला का इलाज
भगंदर यानी फिस्टुला में गुदा के आसपास पहले एक फोड़ा निकलता है। एलोपैथी में इसका इलाज यह है कि इस फोड़े में छेद करके पस को बाहर निकाल दिया जाता है, फिर छेदन करके उस हिस्से को काटकर अलग कर देते हैं। इसके बाद सामान्य तरीके से मरहम-पट्टी करके मरीज को छोड़ दिया जाता है। ऐसे घाव को भरने का समय घाव की लंबाई, चौड़ाई और गहराई के हिसाब से कुछ दिनों से लेकर हफ्तों या महीनों तक हो सकता है। कुछ मरीजों में एक बार ठीक होने के बाद समस्या फिर से उभर आती है और दोबारा सर्जरी की जरूरत पड़ती है। बार-बार सर्जरी की वजह से मरीज के एनल स्फिंक्टर के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बढ़ जाता है जिससे मरीज के मल को रोकने की शक्ति कम हो जाती है। ऐसे में फिस्टुला के इलाज के लिए बहुत ज्यादा सर्जरी भी नहीं की जा सकती। इस स्थिति में क्षार सूत्र-चिकित्सा काफी कामयाब है।
आयुर्वेद एक्स्ट्रा

मस्सों को हटाना मुमकिन
मस्सों की जड़ों में क्षारसूत्र को खास तरह की गांठ द्वारा बांधा जाता है। इसमें मस्सों को अंदर कर दिया जाता है और धागा बाहर की ओर लटकता रहता है। इसे बेंडेज द्वारा स्थिर कर दिया जाता है।
-मस्सों को हटाने में एक से दो हफ्ते का समय लग सकता है।
-इस दौरान क्षारसूत्र के जरिए दवाएं धीरे-धीरे मस्से को काटती रहती हैं और आखिरकार सुखाकर गिरा देती हैं। मस्से गिरने के साथ ही धागा भी अपने आप गिर जाता है। इसमें दर्द नहीं होता।
-इस दौरान मरीज को कुछ दवाओं का सेवन करने के लिए कहा जाता है और ऐसी चीजें ज्यादा खाने की सलाह दी जाती हैं जो कब्ज दूर करने में सहायक हों। इनके अलावा गर्म पानी की सिकाई और कुछ व्यायाम भी बताए जाते हैं।
-क्षारसूत्र चिकित्सा के लिए अस्पताल में भर्ती होने की भी जरूरत नहीं होती।

आयुर्वेदिक सर्जरी के बाद 10 बातें जो जरूर ध्यान रखें:
1. सर्जरी से पहले मरीज और उसके रिश्तेदारों को होने वाले सर्जरी और उसके नतीजे के बारे में पूरी जानकारी रखनी चाहिए।
2. सर्जरी के पहले और बाद में क्या नहीं खाना, खाना कब और कैसे शुरू करना है जैसी बातें आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से ही करनी चाहिए।
3. दवाई कब लेनी है, खाने के बाद लेनी है या पहले, अगर पहले लेनी है तो कितनी देर पेट खाली रहने के बाद, दवाई लेने के कितनी देर बाद खाना खाना है, जैसी बातों को अच्छी तरह से समझ लें।
4. सर्जरी के बाद जख्म की साफ-सफाई, पट्टी आदि डॉक्टर की देखरेख में ही करवाएं क्योंकि आपकी थोड़ी-सी जल्दबाजी और लापरवाही सर्जरी को असफल बना सकती है।
5. किसी भी प्रकार की एक्सरसाइज या शारीरिक मेहनत तब तक न करें जब तक कि आपका डॉक्टर इसकी इजाजत न दे।
6. फिजिकल रिलेशन बनाने में जल्दी न करें और डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें।
7. शरीर की सफाई रखें और गर्मी में ठंडे पानी से और सर्दी में गर्म पानी से नहाएं।
8. कपड़े और बेड की चादर आदि को हर दिन बदलें ताकि इन्फेक्शन दूर रहे।
9. कार या बाइक चलाने की जल्दी न करें। पूरी तरह से ठीक होने तक इंतजार करें।
10. अपने सर्जन में, उनकी योग्यता में पूरा विश्वास रखें। सर्जरी के बाद होने वाली किसी भी समस्या जैसे, घाव से खून आने, भूख न लगने, बुखार हो जाने, दस्त होने, घाव में दर्द होने, पेशाब में परेशानी होने पर फौरन ही डॉक्टर से संपर्क करें।

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जरूरी सवालों के जवाब?

- किस तरह की सर्जरी आयुर्वेद से करनी चाहिए और किस तरह की नहीं?
किसी भी इलाज की विशेषता उसकी अपनी टेक्नॉलजी और दवाइयां होती हैं। बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी सर्जरी में भी आयुर्वेद के सर्जन आयुर्वेदिक से जुड़ी तकनीक और दवाओं का ही इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि ऐसा कोई भी इलाज जिसमें दूसरी फील्ड के तरीकों और इलाज का इस्तेमाल करना पड़े, अपनी विशेषता खो देता है। जैसे यदि किसी मरीज को सर्जरी के दौरान किसी भी अवस्था में वेन्स के द्वारा (इंट्रा-वीनस) ग्लूकोज, वॉटर, मिनरल्स, ब्लड और दवाइयां देने की जरूरत पड़े तो यह आयुर्वेद के बुनियादी उसूलों के खिलाफ है। इस बात पर जोर दियाय जाता है कि जहां आयुर्वेद और एलोपैथी के बीच कोई फर्क ही न रहे, ऐसी सर्जरी आयुर्वेदिक सर्जन को नहीं करनी चाहिए। हां, लोकल एनिस्थीसिया या पूरी तरह से बेहोश करने की जरूरत हो तो सिर्फ मदद के तौर पर एलोपैथी के इस तरीके का इस्तेमाल के लिए विशेषज्ञ की सहायता ली जा सकती है।

- अगर कोई सर्जरी होती है तो आयुर्वेद में क्या इसके लिए कोई अतिरिक्त चुनौती भी है?
सर्जरी किसी भी तरह की हो चुनौती तो होती है, लेकिन आयुर्वेद की सर्जरी कम जोखिम वाली है।

- मान लें, किसी ने आयुर्वेदिक डॉक्टर से सर्जरी कराई। अगर कोई समस्या आ गई तो क्या वह दोबारा आयुर्वेदिक सर्जन के पास जाए या एलोपैथिक सर्जन के पास?
अमूमन आयुर्वेदिक सर्जरी के बाद होने वाली किसी भी समस्या के लिए पहले उसी आयुर्वेदिक सर्जन के पास जाना चाहिए, जिसने सर्जरी की है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मरीज का सर्जन में विश्वास और सर्जन का खुद में विश्वास मरीज को जरूर फायदा पहुंचाता है। यही किसी भी इलाज की कामयाबी की चाबी है। कई बार ऐसा देखा जाता है कि मरीज को सब कुछ करने के बाद भी मॉडर्न सर्जन से फायदा नहीं मिल रहा है तो वह आयुर्वेदिक सर्जन के पास पहुंचता है। यहां भी फायदा न मिलने पर वह वापस एलोपैथिक सर्जन के पास चला जाता है। तो कहने का मतलब यह है कि मरीज को फायदा होना चाहिए और इसके लिए वह कहीं भी, किसी के भी पास जाने के लिए आजाद है। यह एक सामान्य चलन है।

- आयुर्वेद की सर्जरी एलोपैथी से अलग और बेहतर कैसे है?
आयुर्वेदिक सर्जरी और एलोपैथिक सर्जरी दोनों ही अपने आप में खास हैं। इनमें आपस में कोई कॉम्पिटिशन या विरोध नहीं है। आयुर्वेद की प्लास्टिक सर्जरी और क्षार सूत्र चिकित्सा को एलोपैथी ने खुशी से अपनाया है। आधुनिक एलोपैथिक सर्जन भी इन विधियों से मरीजों का इलाज कर रहे हैं। सर्जरी एक तकनीक है जो दोनों विधियों में लगभग सामान्य है। अगर कोई फर्क है तो वह दवाइयों का है जो सर्जरी के दौरान मरीज को दी जाती है और उन्हीं के आधार पर हम एक को आयुर्वेदिक सर्जरी और दूसरी को एलोपैथिक सर्जरी कहते हैं। इनमें कुछ अपवाद हैं, जैसे: क्षार सूत्र चिकित्सा, अग्नि कर्म, जलौका-लगाना और रक्त मोक्षण सिर्फ आयुर्वेद की खासियत हैं। वहीं, ऑर्गन ट्रांसप्लांट, बाईपास सर्जरी, लेजर और की-होल रोबॉटिक सर्जरी आदि एलोपैथी की खासियत हैं।

- क्या नहीं खाना और क्या खाना चाहिए?
इस विषय में डॉक्टर के निर्देशों का पालन करें। आयुर्वेद में अमूमन कम तेल और कम मिर्च-मसालों वाली चीजें ही खाने के लिए कहा जाता है। यदि मरीज को शुगर और हाई बीपी की समस्या है तो डॉक्टर ने जिस तरह का खाना बताया है, उसका पूरी तरह से पालन करना चाहिए। यह भी मुमकिन है कि डॉक्टर कुछ दिनों के लिए सिर्फ तरल पदार्थ लेने को कहे। ऐसे में डॉक्टर की कही गई बातों को जरूर मानें। वह जिस तरह का पेय लेने को कहे, वही लें। अपने मन से कुछ भी न लें।

- डॉक्टर की डिग्री कम से कम क्या होनी चाहिए?
सर्जरी एक स्पेशल साइंस है, जिसके लिए स्पेशल एजुकेशन और प्रैक्टिस की जरूरत होती है। आयुर्वेद में भी सर्जन बनने के लिए तीन साल की मास्टर ऑफ सर्जरी (एमएस आयुर्वेद) की जरूरत होती है जो ग्रैजुएशन (बीएएमएस) के बाद ही की जा सकती है। वैसे, महारत हासिल करने के लिए एमएस आयुर्वेद करने के बाद पीएचडी भी की जा सकती है, लेकिन एक आयुर्वेद सर्जन बनने के लिए कम से कम एमएस आयुर्वेद बहुत जरूरी है।

आयुर्वेदिक सर्जरी के लिए 4 बेहतरीन सरकारी संस्थान

बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
www.bhu.ac.in

गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर
www.ayurveduniversity.com

ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद, नई दिल्ली
https://aiia.gov.in/

नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेद, जयपुर
www.nia.nic.in

Banaras Hindu University,Varanasi

Address

Baneshwor
Kathmandu

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