05/31/2025
“ कुंडलिनी जागरण के बिना मोक्ष असंभव ”
हमारे शास्त्रों के अनुसार जब तक मनुष्य की कुण्डलिनी जाग्रत होकर सहस्रार में नहीं पहुँचती, तब तक मोक्ष नहीं होता । पृथ्वी तत्त्व का आकाश तत्व में लय होने का नाम ही मोक्ष है, कैवल्यपद की प्राप्ति है। सिद्धयोग अर्थात् महायोग में शक्तिपात-दीक्षा द्वारा गुरू अपनी शक्ति से शिष्य की कुण्डलिनी को जाग्रत करता है।
गुरू की व्याख्या करते हुए कहा गया है- ‘‘वह शिष्यों को उनके अन्तर में प्रभावी किन्तु सूप्त शक्ति (कुण्डलिनी) को जाग्रत करता है और साधक को उस परमसत्य से साक्षात्कार-योग्य बनाता है।’’
कुण्डलिनी जागरण के सम्बन्ध में कहा हैः-
‘‘ यावत्सा निद्रिता देहे तावत जीवः पशुर्यथा।
ज्ञानम् न जायते तावत कोटियोग-विधैरपि।’’
- स्वामी विष्णु तीर्थ-शक्तिपात।।
‘‘जब तक कुण्ड़लिनी शरीर में शुषुप्तावस्था में रहेगी तब तक मनुष्य का व्यवहार पशुवत रहेगा। और वह उस दिव्य परमासत्ता का ज्ञान पाने में समर्थ नहीं होगा, भले ही वह हजारों प्रकार के यौगिक अभ्यास क्यों न करें।’’
गुरू कृपा रूपी, शक्तिपात-दीक्षा से जब कुण्ड़लिनी जागृत होती है, तब क्या होता है, इस सम्बन्ध में कहा हैः-
“ सुप्त गुरू प्रसादेन यदा जागृर्ति कुण्डली।
तदा सर्वानी पद्मानि भिदयन्ति ग्रन्थयोऽपिच।।”
(स्वात्माराम, हठयोग प्रदीपिका, 3 - 2)
‘‘ जब गुरू कृपा से सुप्त कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है, तब सभी चक्रों और ग्रन्थियों का (ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि और रूद्रग्रन्थि ) भेदन होता है। इस प्रकार साधक समाधि स्थिति, जो कि समत्त्व बोध की स्थिति है, प्राप्त कर लेता है।
शक्तिपात होते ही साधक को प्रारब्ध कर्मों के अनुसार विभिन्न प्रकार की यौगिक क्रियाएँ (आसन, बन्ध, मुद्राएँ एवं प्राणायाम ) स्वतः ही होने लगती है। शिष्य में जाग्रत हुई शक्ति (कुण्डलिनी) पर गुरू का पूर्ण प्रभुत्व रहता है, जिससे वह उसके वेग को नियन्त्रित और अनुशासित करता है।
कुण्ड़लिनी को हमारे शास्त्रों में जगत जननी कहा है। वह परमसत्ता का दिव्य प्रकाश है, जो सर्वज्ञ है, सर्वत्र है, सर्वशक्तिमान है। अतः जिस साधक की कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है, उसे अनिष्चितकाल तक के भूत-भविष्य एवं वर्तमान काल की प्रत्यक्षानुभूति एवं साक्षात्कार होने लगता है।
- गुरूदेव श्री रामलाल जी सियाग