Health & Wealth

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# shanti, sadbhavna, Santulan, aatmiyta

16/06/2024

मैदा के बने खाद्य पदार्थ क्यों नहीं खाने चाहिऐ ?

1. जैसे ही मैदा से बने चीजें - समोसे, कचौरी, ब्रेड, पाव, बिस्किट, खारी, टोस्ट, नानखटाई, पास्ता, बर्गर, पिज्जा, नूडल्स, नाॕन, तंदूरी रोटी आदि खाते हैं, शरीर में शर्करा (शुगर) का लेवल बढ जाता है (क्योंकि मैदा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज्यादा होता है) इसलिए अग्न्याशय (Pancreas) को पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन छोड़ने के लिए जरूरत से ज्यादा सक्रिय होना पड़ता है। लेकिन मैदा का बहुत अधिक सेवन हो तो इंसुलिन का बनना धीरे-धीरे कम हो जाता है और डायबिटीज हो जाती है।

2. मैदा में अलोक्जल केमिकल होता है जो अग्न्याशय (Pancreas) की इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को मारकर टाइप 2 डायबिटीज पैदा करता है।

3. मैदा कब्ज करता है। क्योंकि इसके कण बहुत ही बारीक हैं, डाइजेसिटिव जूस इसमें मिक्स ना होने से पूरा डाइजेसन नहीं हो पाता है।

4. मैदा को 'सफेद जहर' और 'आंत का गोंद' भी कहते हैं।

5. मैदा से बने ढेरों चीजें एसिडिटी बढाती हैं व इसको बेलेन्स करने के लिए हड्डियों से कैल्शियम सोख लेती है जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, और लम्बे समय तक इनके सेवन से स्थायी सूजन, गठिया आदि कष्टसाध्य बीमारियां हो जाती हैं।

6. अधिक मात्रा में मैदे के सेवन से हानिकारक कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) का बढ़ जाता है। इसके कारण वजन बढ़ने, हाई ब्लड प्रेशर और चित्त में अस्थिरता (मूड स्विंग) की शिकायत हो जाती है।

7. मैदा और इससे बनी चीजों का अधिक मात्रा में सेवन आपको मोटापे की ओर ले जाता है। इसके अलावा, इसके सेवन से आपको अधिक भूख महसूस होती है और मीठा खाने की तलब बढ़ जाती है।

8. मैदा से एलर्जी भी हो सकती है क्योंकि इसमें ग्लूटेन भी ज्यादा होता है।

9. मैदा और इससे बनी चीजें आंतों में चिपक जाते हैं। इसमें पोषक तत्व व फाइबर नहीं होता जिससे पाचन प्रक्रिया धीमी हो जाती है और फलस्वरूप मेटाबोलिज्म सुस्त पड़ जाता है जिस से अपच की समस्या होने लगती है।
इसके अलावा यह तनाव, सिरदर्द और माइग्रेन का कारण भी बन जाता है।

31/05/2024

आज का तापमान 44 डिग्री हुआ...

आइए हम सब मिल के अब 55 डिग्री का लक्ष्य ले कर चलें ।

- और अधिक पेड़ काटें।
- सड़कें चौड़ी करें।
- चारो तरफ सीमेंट के जंगल खड़े करें
- सभी पब्लिकेशन के अखबार मंगाए ताकि बांस-पेड़ समाप्त हो जाएं
- बहूत सारे टूय्ब वेल खोदें
- खूब प्लास्टिक प्रयोग करें
- नदियों में रोज कचरा डालें
- रात-दिन ऐसी चलाऐं
- आटोमोबाइल्स को 24 घंटे चालू रखे,
- पानी सिर्फ आर ओ का पियें और खूब पानी बहाएं
- साईकिल पर प्रतिबंध लगवा दें
- देश में धुंवा व प्रदुषण पैदा करें
- वह सभी कार्य करे जिस से ओजोन छिद्र अपने जीवन काल में खूब बड़ा हो जाय
- खूब डिस्पोजेबल सामान का प्रयोग करें।
- रोज सुबह शाम पाइप लगा कर पीने के पानी से घर के सामने की सड़क धोएं, कार को रोज स्नान करवाए, पम्प चला कर भूल जाये जब तक पड़ोसी आ कर न कहे पम्प बन्द न करें।

व नई पीढ़ी के लिए संदेश छोड़कर जाएं
"पूत सपूत तो क्यों जल संचय"

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*. लू लगना* लू लगने से मृत्यु क्यों होती है? दिल्ली से आंध्रप्रदेश तक....सैकड़ो लोग लू लगने से मर रहे हैं। हम सभी धूप मे...
29/05/2024

*. लू लगना*

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है?
दिल्ली से आंध्रप्रदेश तक....सैकड़ो लोग लू लगने से मर रहे हैं।

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगो की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है?

👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है।
F
👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है।

👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है।( बंद कर देता है )

👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है।

👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त मे उपस्थित प्रोटीन पकने लगता है ( जैसे उबलते पानी में अंडा पकता है )
F
👉 स्नायु कड़क होने लगते है इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते हैं।

👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन ) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है।

👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक- एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है।

👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोडा थोडा पानी पीते रहना चाहिए, और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर ध्यान देना चाहिए।
Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव अगले 5 -7 दिनों मे एशिया के अधिकतर भूभाग को प्रभावित करेगा।

कृपया 12 से 3 के बीच ज्यादा से ज्यादा घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें।

तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा।

यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा।

(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है।)

कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें।

किसी भी अवस्था मे कम से कम 3 ली. पानी जरूर पियें।किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम 6 से 8 ली. पानी जरूर लें।

जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें। किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है।

ठंडे पानी से नहाएं। मांस का प्रयोग छोड़ें या कम से कम करें।

फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें।

हीट वेव कोई मजाक नही है।

एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है।

शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है।

अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें।

🌹🕉️🙏

15/04/2024

*!! मानसिक विकास का अटल नियम !!*

🔸 *जिस प्रकार के विचार हम नित्य किया करते हैं उन्हीं विचारों के अणुओं का मस्तिष्क में संग्रह होता रहता है। सारे दिन जो निठल्ले बैठे रह कर गपशप लगाया करते हैं, उनके मस्तिष्क में फालतू विचारों का कचरा ही इकट्ठा हुआ करता है और अन्य सद्रुणों के अणु शुष्क हो जाते हैं। जो व्यक्ति दुष्ट दुर्व्यसनों अथवा दुर्गुणों में फँसे रहते हैं, उनके मस्तिष्क में उसी प्रकार के अणुओं की वृद्धि होती रहती है।*

🔹 *मस्तिष्क का उपयोग उचित और सत्कार्यों में करने से, उसे आलसी निकम्मा न छोड़ने से मानसिक शक्ति का विकास होता है। सामान्य मनुष्य अपने सारे मस्तिष्क का उपयोग नहीं करता, केवल मस्तिष्क के अर्द्ध भाग को ही उपयोग में लाता है और मस्तिष्क के आधे भाग के अणु निष्क्रिय पड़े रहते हैं।* बिना अथ्ययन, सूक्ष्म विचार के मस्तिष्क संकुचित हो जाता है। दूसरों के आदेश व सम्मति पर जो मनुष्य अपना जीवन संचालन करते हैं उनकी बुद्धि इतनी सुस्त व मन्द हो जाती है कि स्वतः विचार नहीं कर सकते। अपने विचार करने का कार्य दूसरों से करवाते हैं किंचित मात्र भी *अपने विचार रूपी यन्त्र का उपयोग नहीं करते। फलतः उनके मस्तिष्क संकीर्ण हो जाते हैं और उनका सारा जीवन दासता के बन्धन में ही व्यतीत होता है।*

🔸 *मस्तिष्क को उत्तम या निकृष्ट बनाना तुम्हारे हाथ में ही है। सोचो, विचारो तथा मनन करो। क्रोध करने से तुम्हारे मस्तिष्क में क्रोध करने वाले अणुओं की संख्या की वृद्धि होती है।* चिंता, शोक, भय व खेद करने से इन्हीं, कुविचारों के अणुओं का तुम पोषण करते हो और मस्तिष्क को निर्बल बनाते हो। *भूतकाल की दुर्घटनाओं या दुखद प्रसंग को स्मरण कर, खेद या शोक के वशीभूत होकर मस्तिष्क को निर्बल मत बनाओ।*

🔹 शरीर में बल होते हुए भी उसका उपयोग न करने से, बिना उपयोग से बल क्षीण होता है। इसी प्रकार बिना विचार के मस्तिष्क भी क्षीण होता है। *नवीन विचारों का मन में स्वागत करने से मस्तिष्क का मानस व्यापार व्यापक होता है तथा मन प्रफुल्लित हो जाता है, जीवन व बल की वृद्धि होती है, मन व बुद्धि तेजस्वी बनते हैं। जो विचार हमारे मस्तिष्क में हैं, वे ही हमारे जीवन को बनाने वाले हैं। जिस कला के विचार तथा अभ्यास करोगे, उसी में निपुणता मिलेगी। मस्तिष्क के जिस भाग का उपयोग करोगे, उसी की शक्तियों का विकास होगा।*

✍🏻 *पं श्रीराम शर्मा आचार्य*
📖 *अखण्ड ज्योति, जुलाई 1946*

Weight management tips
14/04/2024

Weight management tips

Healthy wealthy plats with protein, carb & fiber April month
14/04/2024

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Healthy breakfast plates with rich fiber & micronutrients
19/03/2024

Healthy breakfast plates with rich fiber & micronutrients

Palak roti green chana ki sabji with salad  today for lunch plat
18/03/2024

Palak roti green chana ki sabji with salad today for lunch plat

स्वस्थ, निरोगी,आरोग्यवान और बलवान जिन्दगी के लिए प्रकृति के संरक्षण में, प्रकृति के साथ।
04/02/2024

स्वस्थ, निरोगी,आरोग्यवान और बलवान जिन्दगी के लिए प्रकृति के संरक्षण में, प्रकृति के साथ।

सर्दियों मे स्वस्थ व्यस्त और मस्त रहने के लिए अमृत है ये दोनो फूड सप्लीमेंट।रोगप्रतिरोधक क्षमता, मेंटल हेल्थ, गट हेल्थ, ...
12/01/2024

सर्दियों मे स्वस्थ व्यस्त और मस्त रहने के लिए अमृत है ये दोनो फूड सप्लीमेंट।
रोगप्रतिरोधक क्षमता, मेंटल हेल्थ, गट हेल्थ, श्वसन तंत्र आदि के लिए लाभदायक है।

नकारात्मकता ही हमारे स्वास्थ और जीवन को बर्बाद करती है इसी से रोग उत्पन्न होते हैं और हम जीवन में नकारात्मक सोच के कारण ...
11/01/2024

नकारात्मकता ही हमारे स्वास्थ और जीवन को बर्बाद करती है इसी से रोग उत्पन्न होते हैं और हम जीवन में नकारात्मक सोच के कारण ही असफल और पिछड़े रह जाते है।

Natures care in my life my good health.
10/01/2024

Natures care in my life my good health.

मानव शरीर प्राकृतिक कुदरती है जो जितना प्रकृति से दूर है वो उतना ही ज्यादा बीमार और परेशान है। प्रकृति कर साथ प्रकृति के...
10/01/2024

मानव शरीर प्राकृतिक कुदरती है जो जितना प्रकृति से दूर है वो उतना ही ज्यादा बीमार और परेशान है। प्रकृति कर साथ प्रकृति के संरक्षण में रहें और स्वस्थ मस्त व्यस्त निरोगी रहें।

22/07/2020

"विशिष्ट समसामयिक चिन्तन"

*आखिर क्यों बढ़ रहा है कोरोना ?*

*कारण और निवारण*

*🤲मानसिक आध्यात्मिक इलाज🤲*

अपने देश में ही नहीं पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का संक्रमण क्यों बढ़ रहा है जबकि पूरी दुनिया के चिकित्सक, वैज्ञानिक, सरकारें सभी इसे मात देने में जुटे हुए हैं फिर भी इससे मुक्ति क्यों नहीं मिल रही है। परिवार, समाज, सरकारों और आम लोगों में भय तथा दहशत का माहौल क्यों है, आखिर इन सबके पीछे क्या कारण है कौन जिम्मेदार है, दोष किसका है ? गल्तियां कहाँ हो रही हैं, गड़बड़ी कहाँ है ?

इन सबके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है, कि सरकारों, मीडिया, समाज के गैर जिम्मेदार ठेकेदारों ने इसका ढिंढोरा पीट-पीट कर दिमाग🧠 में इतना जहर घोल दिया है कि लोग इसके नाम से ही भय खाने लगे हैं, जब तक यह जहर लोगों के मन(जहन) से नहीं निकाला जायेगा तब तक दुनिया की कोई ताकत, कोई भी सरकार और दवाई से इसकी दहशतगर्दी दुनिया से खत्म नहीं हो सकती है चाहे कोई सर पटक के मर जाए।

क्योंकि आज जहाँ भी देखो इसकी ही चर्चा और खर्चा है, सरकार,मीडिया, परिवार, समाज,आम जनता सब जगहों पर एक ही आवाज सुनाई देती है *कोरोना बहुत तेजी से बढ़ रहा है*
इन नादनों को क्या यह ज्ञात नहीं है की जिसकी जितनी ज्यादा चर्चा, प्रचार होता है उसका उतना ही प्रसार, फैलाव होता है, वह उतना ही ज्यादा बढ़ता जाता है
बस यही एकमात्र कारण है इसके बढ़ने का, क्योंकि प्रकृति का शाश्वत और अचूक नियम है कि *जैसा बोया जाता है वैसी ही फसल होगी*
आज मानव जाति अपनी ही बोई फसल काट रही है। मानव ने ही इसे आकर्षित किया है आकर्षण के नियम के तहत मानव जाति ही इसके लिये जिम्मेदार है।
मन मस्तिष्क के नियमों, कारण और परिणाम, क्रिया और प्रतिक्रिया, आकर्षण के अटल, अटूट सार्वभौमिक प्राकृतिक नियमों को कोई बदल नहीं सकता ये आदि अनादि काल से हर युग,काल और समय, स्थान में गतिशील रहते हैं और अपना सटीक परिणाम देते हैं।
विचार तथा मन के नियमों के अनुसार जैसा अंदर वैसा बाहर, जैसा ऊपर वैसा नीचे, जैसी मानसिकता वैसा ही जीवन और शरीर में प्रगट होगा, जैसे विचार सोच चिंतन और आदतन प्रकृति मन में होगी वैसे ही परिणाम जीवन के धरातल में प्रगट होगें, जैसा बीज होगा फल भी उसी के अनुरूप मिलेगा।
क्रिया और प्रतिक्रिया, कारण और परिणामों, तथा मन के नियमों के अनुसार "कोई भी चीज पहले मन में विचारबीज के रूप में आती है जब इसे दोहराव की खाद पानी मिलती है तो यह दोहराव की मात्रा और तीव्रता के अनुपात में जीवन और शरीर में जल्द या देर से भौतिक रूप में प्रगट हो जाती है" क्योंकि दोहराव की खाद से आदत बनती है और आदत एक दिन सच्चे-झूठे विश्वासों को जन्म देती है,
प्रकृति के नियम के अनुसार मन के विश्वास के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं। मन को सही गलत से कोई फर्क नहीं पड़ता यह तो विश्वास के अनुरूप फल देता है।
दोष तो बीज का चयन करने और बोने वाले का होता है की वह किस बीज का चुनाव करता है और अपने मन के खेत में बोता है तथा किस मात्रा में उसे दोहराव की खाद, देता है और उसकी रक्षा करता है।
अत: मेरा सरकार, मीडिया, समाज,धर्म, परिवारों और आम लोगों से 🙏अनुरोध 🙏है कि इसकी सबसे पहले प्रचार और चर्चा बन्द करें, अपना ध्यान (फोकस) इससे हटा कर जीवन की ओर लगाएं, सतर्कता, सावधानी रखते हुए अपने अपने काम धन्धे, परिवार, स्वस्थ्य, शान्ति, खुशी, तरक्की, प्रगति,विकास के विचारों तथा काम में अपना समय, श्रम और धन लगाएं अपनी मानसिकता को बदलें।
तो शीघ्र ही हम आप और हमारा देश समाज तथा पूरा विश्व, एवं मानव जाति इस महामारी के चंगुल से मुक्त हो सकते हैं।

*प्रज्ञेय*

16/05/2020
14/05/2020

अखंड ज्योति पत्रिका January 1942

"वर्तमान की विषम स्थिति में परिवर्तन आवश्यक है।"

अब ठीक यह समय अवतार होने का है। सृष्टि का संतुलन बहुत ही ऊँचा नीचा हो गया है। मानव जीवन की स्वाभाविक स्थिति बहुत ही विकृत हो गई। सरल जीवन कठिन और कंटकाकीर्ण बना हुआ है। प्रकृति की दी हुई वस्तुओं पर दूसरों का अनुचित कब्जा है। लोगों को स्वाभाविक आवश्यकताओं की पूर्ति से वंचित रहना पड़ता है। संसार में जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं की कमी नहीं है, पर व्यवस्था ऐसी गड़बड़ है कि एक ओर तो असंख्य व्यक्ति भूखे तड़प तड़प कर प्राण दे रहे हैं। दूसरी ओर अन्न राशि को अग्नि की भेंट इसलिए किया जा रहा है कि पैसे वालों की इच्छानुसार भाव रहें। एक ओर बेकारी और गरीबी के चक्र में दुनिया पिस रही है , दूसरी ओर अमीरों के खजाने तूफानी वेग से बढ़े जा रहे है। सामाजिक जीवन और भी पेचीदा हो गया है। बाल विवाह, वृद्ध विवाह, कन्या विक्रय और क्रय, अपहरण, बलात्कार, तलाक, दुराचार आदि कारणों से दांपत्ति जीवन का स्वर्गीय आनन्द नष्ट हो गया है और उसके स्थान पर नारकी कलह एवं मनोमालिन्य उठ खड़ा हुआ है। मनुष्य-मनुष्य के बीच भाईचारे का प्रेम सम्बन्ध टूट गया है। काले, गोरे, दास, मालिक, गरीब, अमीर, ऊँच, नीच, छूत, अछूत, के बीच में इतनी गहरी खाई है कि एक दूसरे से बहुत दूर पड़ गये हैं। एक ही पिता की संतान, अपने भाई की छाया पड़ने से भी अपवित्र हो जाती है। हमारे अहंकार, हमारे अन्धकार! तेरा नाश हो।

स्वास्थ्य के नियमों का पालन करने के स्थान पर फैशन का शैतान विराजमान है। सिर से पैर तक फैशन से लदे हुए, अनावश्यक, अपवित्र और हानिकर टीमटाम के द्वारा रोगों का आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है। इन्द्रिय लिप्सा से अन्धे होकर लोग शरीर के ईश्वर दत स्वतों को गला रहे हैं। आँखें गड्ढ़े में धँसी हुई, मुख सूखा हुआ, हंड्डियों का ढोल मात्र धारण किये हुए बाबू लोग इधर से उधर घूमते दिखाई देते हैं चुरुट का धुआँ फक फक फूँकते हुए नकली आँखों की सहायता से देखने वाले ये युवक जीते तो हैं, पर यदि इनकी जिन्दगी को भी जिन्दगी कहेंगे, तो मौत किस चीज को कहा जायेगा। रोगों का घर, व्याधियों का मन्दिर शरीर बना हुआ है। जो कमाते हैं डाक्टरों के बिल में चुका देते हैं, गरम पानी (चाय) से बासी रोटियाँ (बिस्कुट) खाना बस यही इनके भाग्य में बदा है। असली दूध दही मिलना मुश्किल हो रहा है। औसत आयु 20-22 वर्ष रह गई है। मक्खियों की तरह पैदा होते हैं और मच्छरों की तरह मर जाते हैं। बालकपन की पूँछ से बुढ़ापा जुड़ा आता है।

राजनीति अब धर्म-नीति नहीं रही है, उसे कूट नीति बनना पड़ा है। संधियाँ, वायदे, वचन, लोकहित, विश्व-कल्याण यह सब बात उपहासास्पद समझी जाती है। झूठ, फरेब कपट, स्वार्थ-साधन, जिस प्रकार भी होता हो वही राजनीति है। हम देख रहे हैं कि राजनीति के करणधार अपने विरोध को बुरा सिद्ध करने के लिए धर्म और न्याय की दुहाई देते हैं, पर उनके अपने व्यवहार में धर्म और न्याय को जरा भी स्थान देने के लिए तैयार नहीं होते। जनहित की संघ शक्ति शासन सत्ता आज चन्द लोगों का हित साधन करती हैं और अधिकाँश भूखे, नंगे लोग उनके भार से दबे हुए कराहते हैं।

धर्म के स्थान को पाखण्ड ने ग्रहण कर लिया है। अशिक्षित, आलसी, चोर, डाकू, लम्पट, शूद्र, पाखण्डी आज धर्म गुरु बने हुए हैं। कायर, प्रमादी, हरामी और व्यसनी भिखमंगे लाखों की संख्या में साधु संन्यासी बने हुए जनता को पथ भ्रष्ट करते फिर रहे हैं। अपना बड़प्पन प्रकट करने, पैर पुजाने, शिष्य बनाने और भिक्षा प्राप्त करने के अतिरिक्त और कोई कार्य धर्म गुरुओं का प्रतीत नहीं होता। सिद्धान्त और उपदेश उनकी जिह्वा तक ही है। पर उपदेश में कुशल हैं, किन्तु कुछ भी कष्ट सहन का प्रसंग आ जायं तब तो उनकी नानी ही मरती है।

आध्यात्म-ज्ञान! बस, यहाँ तो पूरी अराजकता है। अन्ध श्रद्धा, अज्ञान, भ्रम, उन्माद, हठधर्मी, यही अध्यात्मतत्त्व की चार दीवारी है। आज कपिल और कर्णादि हमें दिखाई नहीं देते, जो अपने तर्क और अनुभव की कुल्हाड़ी से भ्रम जंजालों की कटीली झाड़ियाँ को काट दें और आध्यात्म तत्व को अन्धकार में से उबारकर किनारे तक पहुँचा दें।

सभी दिशाओं में अव्यवस्था का साम्राज्य छाया हुआ है। इस अशान्ति की मरुभूमि में से दो पिशाच पैदा हुए हैं (1) स्वार्थ (2) असत्य। हर मनुष्य अपने स्वार्थ के साधन में प्रवृत्त है, इसके लिए वह बुरे से बुरे काम, नीच से नीच कुकर्म करने को तैयार है। पुरुष रुपयों के बदले अपनी कन्या का माँस तराजू से तोल कर वृद्ध और रोगी कुत्तों को बेचने लगे और स्त्रियाँ सतीत्व का व्यापार करने लगीं। चोरी, दगाबाजी, विश्वासघात, ठगी ऋण मारना, हत्या, कौन सा ऐसा जघन्य कार्य है जिसे मनुष्य अपने स्वार्थ साधन के लिए नही करते ।पति पत्नी और पिता पुत्र का रिश्ता स्वार्थ की आधार शिला पर स्थापित होने लगे है। मनुष्य भेड़िये की तरह जीभ निकलकर दूसरों का रक्तपान करने के लिए इधर-उधर दौड़ता फिर रहा है। तृष्णा के मारे अन्धा हो रहा है अपना पराया उसे कुछ सूझ नहीं पड़ता। स्वार्थ और असत्य के पिशाचों ने मनुष्य जाति को अपनी मोहिनी में फाँस लिया है और संसार को अपनी उंगली के इशारे पर नचा नचा कर इस देव दुर्लभ भूमि को मरघट बनाये हुए है। अब दुनिया इस शोकानी चक्र में पड़ी-पड़ी व्याकुल हो रही है। अनाचार के बोझ से दबी हुई वसुन्धरा प्रार्थना कर रही है कि हे नाथ! अब मुझ से सहा नहीं जाता। भगवान उसकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए शीघ्र ही प्रकट होने की तैयारी कर रहे हैं।
वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ, युगप्रवर्तक पं. श्री राम शर्मा आचार्य

"चुनौतीपूर्ण परीक्षाकाल ":-           दुनिया भर में सूर्य के समान प्रखर, तेजस्वी, जाज्वल्यमान अखिल विश्व गायत्री परिवार ...
10/05/2020

"चुनौतीपूर्ण परीक्षाकाल ":-
दुनिया भर में सूर्य के समान प्रखर, तेजस्वी, जाज्वल्यमान अखिल विश्व गायत्री परिवार की ओर इन दिनों सारी विश्व विरादरी आशा भरी नजरों से देख रही है।आने वाले निकट भविष्य में इस परिवार को विश्व समुदाय द्वारा महती जिम्मेदारी दी जाने वाली है। गायत्री परिवार को वैश्विक स्तर पर विश्व शान्ति, एकता, मानव संस्कृति, सभ्यता के विकास और समन्वय की भूमिका का निर्वहन करना है।
यही वजह है की आज यह परिवार आक्षेपों की परीक्षा और जाँच के चुनौती पूर्ण दौर से गुजर रहा है। इस परिवार और इसके प्रमुखों पर कुछ इसी परिवार के असन्तुष्ट लोगों द्वारा संगीन और गम्भीर आरोप लगाए गए हैं। जिसने परिवार की प्रमाणिकता, प्रतिष्ठा, और नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।
इस परिवार के लिये यह संकट, समस्या, बाधा नहीं है, अपितु चुनौतीपूर्ण परीक्षाकाल और प्रमाणिकता सिद्ध करने का समय है। विभिन्न सभी जांचों, परीक्षणों से कुंदन की तरह तप कर 16 करोड़ गायत्री परिजनों के विश्वास, आस्था, श्रद्धा और भावनाओं पर खरे उतरने और विरोधियों को संयम, साधना, मर्यादा में रहकर मुंहतोड़ करारा जवाब देने का समय है।
इन चुनौतियों और परीक्षा में किसी भी गायत्री परिवार के कर्तव्यनिष्ठ परिजन को अधीर, विचलित, चिंतित होने की आवश्कता नहीं है। धैर्य, संयम तथा विश्वास से अपने कार्यों में जुटे रहें और लक्ष्य पर ध्यान दें, आरोपों -प्रत्यारोपों से बचें, इन पर जितना ज्यादा ध्यान, समय और मानसिक उर्जा शक्ति लगाएँगे उतना ही मन विचलित, खिन्न, उद्दिग्न होगा, निराशा होगी और श्रद्धा,आस्था, विश्वास कमजोर होगा। अपने गुरु के बताये दिशा निर्देशों पर अडिग रहें। उनके बताये सिखाए और बनाए गये नैतिकता, आध्यात्मिकता पर कायम रहें। विचलित होकर अपने वाणी का स्तर न गिरायें। घटिया और अमानवीय न बनें।
इसके परिणामों का दायित्व गुरु सत्ता को सौंप दें, हमारी गुरुसत्ता समर्थ, सशक्त, तपस्वी और शक्तिवान है। महाकाल की अवतारी चेतना है, वह एक ही झटके में अपने खुद के तप साधना से खड़े किये गये मिशन, परिवार के ऊपर आये झंझावातों को तिनके के समान झाड़ देगी, क्योंकि यह मिशन और परिवार किसी समान्य मानवीय चेतना ने नहीं, स्वयं ईश्वरीय विधान द्वारा गढ़ा, पिरोया बनाया गया है, तो वह अवतारी सत्ता किसी को कैसे अपने किये कराये को बिगाड़ने, खिलवाड़ करने दे सकती है।
आज जब समूचे विश्व का कचरा कोरोना जैसी महामारी, आपदाओं, अनिष्टकारी घटनाक्रमों से प्रकृति द्वारा साफ किया जा रहा है तो इस गायत्री परिवार में कचरा सफाई (झूठा अहम, अहंकार, ढोंग, दिखावा, प्रदर्शन, आधुनिकीकरण, ईर्ष्या, घृणा, संतुष्टीकरण आदि) का स्वच्छता अभियान चलाया जाना आवश्यक है, क्योंकि आने वाले भविष्य काल सन 2026 तक इस परिवार को अपने गुरुवर के सपने और भविष्यवाणी ( इक्कीसवीं सदी उज्जवल भविष्य और सतयुग की वापसी) को साकार करके दिखाना है। उसके लिये गुरुसत्ता को अपना ताना बाना तो बुनना ही होगा।
वैसे भी विश्व में गायत्री परिवार ही एकमात्र ऐसा है जो मानवमात्र, विश्वशान्ति और विश्व तथा मानव कल्याण के लिये संकल्पित, समर्पित और प्रतिबद्ध है, इसलिये सभी माँ गायत्री के सच्चे और असली साधकों से आग्रह, अनुरोध है कि धीरज रखें, धैर्य, संयम से काम लें। दिल, दिमाग, मन और आत्मा में शान्ति, विश्वास, श्रद्धा, आस्था रखें। गुरूसत्ता अपने हिमालयवासी गुरु चेतना के निर्देशानुसार अपने गुरुत्तर कार्य में जुट गई है। शीघ्र ही सारे काले बादलों के बीच से प्रखर, तेजस्वी, चमकता हुआ स्वर्णिम सूर्य (और अधिक प्रखर, सशक्त गायत्री परिवार) उदय होगा।
विशेष : इस प्रस्तुत पोस्ट पर लिखाई तो लिखने वाले हाथों की है, लेकिन इसकी आत्मप्रेरणा, मार्गदर्शन, विचार, लेखन और सम्पादन गुरुसत्ता की चेतना द्वारा गढ़ा पिरोया गया है।
सौजन्य- पत्रकार - वेद प्रकाश प्रज्ञेय सुपुत्र स्व. श्री डा. रतन सक्सेना सतना म.प्र.

02/05/2020

धर्म सम्प्रदाय एक मानवीय मानसिक रोग है और जातियां इन्सान को कुनबों, समूहों, टुकड़ों में विघटित करने वाले षड्यन्त्र हैं।

25/04/2020

वर्तमान में जाति, कुल और वंशानुगत ब्राह्मणों की अधिकता है लेकिन चिंतन,चरित्र और आचरणगत ब्राह्मणों का अभाव है ।

22/04/2020

कोरोना वैश्विक महामारी नहीं वैश्विक कचरा (आसुरी वृत्तियों-पाप,अनीति , दुष्ट चिंतन) शुद्धिकरण हेतु महाकाल का शंखनाद है।

प्रज्ञेय

04/04/2020

5 अप्रैल को भारत माता के सपूत दिये जलाएंगे और कपूत दिल जलाएंगे।
तभी पूर्ण प्रकाश पर्व सार्थक होगा।

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Dhawari M. P
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