Modern Homeo Clinic

Modern Homeo Clinic Dr.Sumit Dindorkar
B.H.M.S.,M.D. Homeopathy
Chronic Diseases Specialist
Psychological Counselling

नमस्कार मित्रों"हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विनोन" नाम याद है? गत वर्ष यह दवाई कोरोना प्रोटोकॉल के अंतर्गत सरकार दे रही थी व जिसक...
30/04/2021

नमस्कार मित्रों

"हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विनोन" नाम याद है?

गत वर्ष यह दवाई कोरोना प्रोटोकॉल के अंतर्गत सरकार दे रही थी व जिसकी कालाबाजारी के बाद सरकार को इसका निर्यात बंद करना पड़ा ताकि यह आसानी से भारतीयों के लिए उपलब्ध हो सके। इसके बाद रेमडेसीविर इंजेक्शन के साथ भी यही हुआ। अंततः सरकार को इसका निर्यात भी बंद करके इसे आम जनता के लिए उपलब्ध कराना पड़ा। यही अवस्था अब एक होम्योपैथी की दवाई की हो रही है जिसके मेसेज whatsapp और फेसबुक पर इन दिनों लॉकडाउन में अखंड फालतू बैठे हुए लोग अपने मुफ्त के 4G डेटा को खर्च करके यहाँ-वहाँ फॉरवर्ड कर रहे हैं। पर वो यह नही जानते कि इससे दवाई किसी जरूरतमंद को मिले ना मिले किन्तु कालाबाजारी व्यक्ति अवश्य इसे संग्रह करके रख लेगा ताकि अवसर मिलने पर इसे दुगने दाम में बेचकर गाढ़ा मुनाफा कमाया जा सके।

इन घटनाओं का वास्तविक कारण क्या है?

इसका कारण है-"हम भारतीयों की काली पड़ चुकी अंतरात्मा"।

हम लोग वैसे बुरे लोग नहीं हैं। गौरवशाली इतिहास और संस्कृति का चोला पहने हुए हम लोग स्वयं को विदेशी आतताइयों से दमित और वर्तमान में सरकारी योजना को छुप छुप कर चूसने के बाद भी अत्यंत दीन-हीन दर्शाते हैं पर जब भी हमें कालाबाजारी का सुअवसर मिलता है तो हम अवसर का लाभ उठाने में कतई नहीं चूकते हैं। बात हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विनोन की हो, रेमडेसीविर की हो, ऑक्सीजन सिलेंडर की हो,पल्स ऑक्सीमीटर की हो या अभी अभी वायरल हुई होम्योपैथी की किसी दवाई की हो। मरते हुए भी हम कालाबाजारी करके कमाया हुआ पाप अपनी किस्मत में ठूंसकर मरना चाहते हैं ताकि मरने के बाद जब चित्रगुप्त हमारा लेखा-जोखा देखें तो उसे भी तरस आ जाए और वह कहे कि-"हे पापी आत्मा, नरक में भी तेरे लिए बेड(जगह)नहीं है।"

अतः कालाबाजारी बंद करें और स्वविवेक का उपयोग करें व अनावश्यक मेसेज यहाँ वहाँ अग्रेषित ना करें।

घर पर रहें और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करें।

-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
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खरगोन(म.प्र.)
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28/04/2021

नमस्कार मित्रों,

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण क्लीनिक की समयावधि कम कर दी है। मैं केवल दिन की शिफ्ट में प्रातः 10:00 से दोपहर 1:00 बजे तक ही उपलब्ध रहूंगा। शाम को क्लीनिक आगामी सूचना तक बंद रहेगा। मरीज कृपया फोन करके व डबल मास्क पहनकर आवें। दवाई क्लीनिक के मुख्य द्वार के बाहर से ही दी जाएगी।

धन्यवाद

-डॉ.सुमित दिंडोरकर
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नमस्कार मित्रों,सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन को कोरोना हो गया। सभी उनके स्वास्थ्य के शीघ्र ठीक होने की कामना कर रहे ...
13/07/2020

नमस्कार मित्रों,सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन को कोरोना हो गया। सभी उनके स्वास्थ्य के शीघ्र ठीक होने की कामना कर रहे हैं। परंतु कुछ तथाकथित "बुद्धिजीवी" डॉक्टर ऐसे समय में भी अमिताभ बच्चन द्वारा जो कोरोना से बचाव(प्रिवेंशन) की होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक दवाइयाँ (जैसे आर्सेनिक एल्बम तथा कालीमिर्च,अदरक,हल्दी या गिलोय अथवा आयुष विभाग का काढ़ा इत्यादि) उपयोग में लायी अथवा प्रचारित की गई थी,उन प्रिवेंटिव दवाओं की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं। उनका यह कहना पड़ता है कि होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक प्रिवेंशन की दवाइयाँ लेने के बाद भी अमिताभजी कोरोना संक्रमित कैसे हो गए? ऐसे तथाकथित जलकुकड़े व खुद को देव धनवंतरी, डॉ.हैनिमैन और महान हिप्पोक्रेटस भी अधिक ज्ञानी समझने वाले तबके को मैं यह दो टूक कहना चाहता हूं कि यदि आपने चिकित्सा विज्ञान का थोड़ा भी अध्ययन किया होता तो ऐसी निराधार बातें करने के पहले आपकी जीभ को लकवा मार गया होता। प्रिवेंशन की दवाइयां व्यक्ति की इम्युनिटी को बढ़ाती है और ऐसा व्यक्ति यदि किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आता है तो उसके रक्त में वायरस की संख्या एक सीमित स्तर पर पहुंचने के बाद ही वह व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो पाता है। इसे हम "वायरल लोड" कहते हैं। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अमिताभजी की उम्र 70 वर्ष से अधिक है और एक बूढ़े शरीर में कितना "वायरल लोड" सहन करने की क्षमता है यह बताना असंभव है। ऐसे में प्रिवेंटिव दवाइयां लेने और प्रचार करने के परिणामों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना अतार्किक और वैचारिक अजीर्ण दर्शाता है। एक और जहाँ भारत सरकार ही नही बल्कि विदेशी सरकारें आयुष चिकित्सकों के कोरोना फ्रंट पर लड़ने पर उनका सम्मान कर रहें हैं और दूसरी और कुछ आत्ममुग्ध व स्वघोषित ढोंगी हज़ारों लोगों को स्वास्थ्य लाभ देने वाली तथा प्रतिष्ठित लोगों द्वारा प्रमाणित विश्वविख्यात होम्योपैथी एवं दुर्लभ व प्राचीन ज्ञान से भारत का नाम विश्वभर में जगमग करने वाली विलक्षण आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को नीचा दिखाने का घृणित और कुत्सित प्रयत्न कर रहें हैं। पर मैं यह स्पष्ट कर दूं कि सूरज पर थूकने वाले के अपने मुँह पर ही थूक आ गिरता है।

-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
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"मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया" इन आखिरी शब्दों के साथ आज ही के दिन 2 जुलाई 1843 को होम्योपैथी के जनक इस दुनिया से विदा लेकर...
02/07/2020

"मेरा जीवन व्यर्थ नहीं गया" इन आखिरी शब्दों के साथ आज ही के दिन 2 जुलाई 1843 को होम्योपैथी के जनक इस दुनिया से विदा लेकर हमेशा के लिए अमर हो गए

होम्योपैथी के जनक डॉ.सैम्युअल हैनिमैन को हृदय से नमन व श्रद्धांजलि
🙏🏻

-डॉ.सुमित दिंडोरकर
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Happy Doctor's Day to all of you.मित्रों,कोरोना वाइरस की महामारी के दौरान हर मोर्चे पर लड़ने वाले हमारे सभी चिकित्सक बंधु...
01/07/2020

Happy Doctor's Day to all of you.

मित्रों,कोरोना वाइरस की महामारी के दौरान हर मोर्चे पर लड़ने वाले हमारे सभी चिकित्सक बंधुओं एवं प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से लड़ने वाले प्रत्येक कोरोना योद्धा को चिकित्सक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें।

-डॉ.सुमित दिंडोरकर
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मित्रों,क्लीनिक पर एक व्यक्ति से चर्चा के दौरान मुझे मेरे छः वर्षीय बेटे शर्विल का फ़ोन आया।कभी कभार वह किसी विशेष मनुहार...
27/06/2020

मित्रों,क्लीनिक पर एक व्यक्ति से चर्चा के दौरान मुझे मेरे छः वर्षीय बेटे शर्विल का फ़ोन आया।कभी कभार वह किसी विशेष मनुहार के लिए उसकी माँ से कहकर मुझे फ़ोन लगवा दिया करता है।उससे मैं हमेशा मेरी मातृभाषा मराठी में ही बात करता हूँ।फ़ोन रखने के बाद मेरे सामने बैठे व्यक्ति ने तिरस्कार करते हुए पूछा-
"डॉ.साहब,आप इतने मॉडर्न होकर भी मराठी भाषा में बात करते हैं?"
मैं(चकित)-"मातृभाषा में बात करने से मॉडर्न नही होने का क्या संबंध?हमारे घर पर तो हम सभी आपस में हमारी मातृभाषा मराठी में ही बात करते हैं।आजकल ठेठ पुणे से आये हुए और मराठी में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त किये संभ्रांत लोग भी मध्यप्रदेश में आने के 6 महीनों बाद ही मराठी बोलना भूल जाते हैं।मातृभाषा के प्रति ऐसा खोखला स्वाभिमान?"

व्यक्ति बोला-"मेरी मातृभाषा निमाड़ी है लेकिन मैं तो भूल से भी मेरे बच्चे को निमाड़ी नहीं सिखाऊंगा।

भुजंग की तरह फड़फड़ाते हुए उस व्यक्ति पर अपनी तीसरी आँख टिकाते हुए मैं गंभीरता से बोला-"निमाड़ी जैसी मीठी और जमीन से जुड़ी हुई भाषा के बारे में आपके ऐसे तुच्छ विचार?और जबकि वह आपकी मातृभाषा है।मातृभाषा अर्थात वह भाषा जो आपको आपकी माँ सिखाती है।यह प्रेम की भाषा है।मातृभाषा अनुकरण करके सीखी जाती है।अन्य भाषाएं तो बच्चें बाहर के वातावरण में या स्कूल में सीख ही जायेंगे किन्तु मातृभाषा कहाँ से सीखेंगे?और यहाँ प्रश्न अपनी मातृभाषा को संजोकर उसे अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का है।मैं हमेशा से यह मानता आया हूँ कि भारत मे हर व्यक्ति को न्यूनतम 3 भाषाएं आनी ही चाहिए।प्रथमतः उसकी मातृभाषा(जिसकी जो भी मातृभाषा हो,जैसे मराठी,निमाड़ी,गुजराती,मालवी),दूसरी राष्ट्रभाषा अर्थात गौरवशाली हिंदी।तीसरी क्षेत्रीय भाषा,जैसे कि यहाँ निमाड़ी।हमारे घर में सभी सदस्य धाराप्रवाह मराठी के साथ-साथ लगभग शुद्ध निमाड़ी भी बोल लेते हैं।घर में माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों से अपनी मातृभाषा में ही बात करें तभी वह भाषा जीवंत रहेगी अन्यथा संस्कृत की तरह विलुप्त हो जाएगी।"

उसने कहा-"पर ये भाषाएं तो बहुत पुरानी हैं।आधुनिक शिक्षा के विकास से बहुत पीछे।कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ने वाले हमारे बच्चे से हम टूटी-फूटी ही सही मगर अंग्रेज़ी में ही बात करते हैं।और हाँ…अभी वह छोटा है इसलिए हिंदी में भी बात करते हैं।"

आता माझी सटकली😡

मैंने कहा-"बंधु,जिन भाषाओं को तुम पिछड़ा हुआ समझ रहे हो उन्ही भाषाओं के पीछे का रहस्य आधुनिक वैज्ञानिक जानना चाह रहें हैं।सभी भारतीय भाषाओं और बोलियों के शब्दों के उच्चारण से जो सूक्ष्म स्पंदन बनते हैं उनसे गले और स्वरयंत्र के अनेक कैंसर और अन्य बीमारियाँ टाली जा सकती है।तभी तो हमारे पूर्वज हज़ारों वर्षों से संस्कृत में श्लोकों को गाते आये हैं।संस्कृत में 2 अरब से अधिक शब्द हैं।और नासा ने सिद्ध कर दिया है कि संस्कृत जिस प्रकार से भूतकाल में सार्वभौमिक भाषा थी ठीक उसी प्रकार वह एक बार फिर भविष्य में सार्वभौमिक भाषा बनेगी क्योंकि यह स्पेस लैंग्वेज यानी कि अंतरिक्ष में भी अप्रभावी रहनी वाली कूट भाषा(code language) है।इसके अलावा कई जटिल अक्षर जैसे कि "ळ" जो केवल मराठी और निमाड़ी में ही आता है।और एक बात,2 से अधिक भाषाएं बोलने वाले बच्चों का दिमाग अन्य बच्चों के दिमाग की अपेक्षा अधिक विकसित होता है।अब बताओ ,मॉडर्न कौन?"
😎

मेरी धुआँधार शब्दवृष्टि से उन सज्जन की तथाकथित "मॉडर्न इमारत" उनके अंतर्मन के तीसरे रसातल तक भरभराकर गिर चुकी थी।संस्कृत कहाँ से सीखी जा सकती है,यह अंतिम प्रश्न पूछने के बाद ठेठ निमाड़ी में मुझसे "राम-राम" बोलते हुए उन्होंने विदा ली।

-मूल लेखक
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नमस्कार मित्रों।आज का हमारा विषय है-"अवसाद(डिप्रेशन) से आत्महत्या तक-"सुशांतसिंह राजपूत, प्रत्यूषा बनर्जी, जिया खान, गुर...
15/06/2020

नमस्कार मित्रों।
आज का हमारा विषय है-

"अवसाद(डिप्रेशन) से आत्महत्या तक-"

सुशांतसिंह राजपूत, प्रत्यूषा बनर्जी, जिया खान, गुरुदत्त, मर्लिन मुनरो, रॉबिन विलियम्स जैसे कई सफल बॉलीवुड व हॉलीवुड कलाकारों के अतिरिक्त संत भय्यूजी महाराज और यह सूची बहुत लंबी है। कलाकार-आम आदमी,नेता या संत, युवा-बच्चे एवं वृद्ध,असफल-सफल, सुंदर-कुरूप, अमीर-गरीब…हर उम्र और वर्ग के मानव आत्महत्या के इस श्राप से ग्रस्त है। जीवन में परिवार का प्रेम, दोस्तों की यारी, आध्यात्मिकता, पैसा, कसरत, पुस्तकें, बागवानी या संगीत जैसे शौक होने के बाद भी प्रतिवर्ष कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं।अवसाद की अवस्थाओं और आत्महत्या की मनःस्थिति पर मैं थोड़ा प्रकाश डालने का प्रयास करता हूँ।

१-पहली अवस्था में व्यक्ति जब निराश होता है तब उसका अवचेतन मस्तिष्क का एक उजला कोना उसे ढांढस बँधाता है।इस प्रक्रिया में उसके संस्कारों और पारिवारिक पृष्ठभूमि और उसके शौक,दोस्ती-यारी, या उसके नैतिक मूल्यों का विशेष प्रभाव पड़ता है। सामान्य व्यक्ति कई बार इस अवस्था से गुजर चुका होता है। 100 में से 90 प्रतिशत मामले इस अवस्था से स्वतः ही ऊपर आ जाते हैं।

२-दूसरी अवस्था में व्यक्ति निराशा के समुद्र में अधिक गहरा उतर जाता है। वह ऊपर से सारी गतिविधियों में सम्मिलित होता है पर अंदर ही अंदर वह क्रियाकलापों या लोगों से मिलने जुलने के आनंद से विलग होता जाता है। काउंसलिंग से ऐसे सारे मामले सुलझाए जा सकते हैं।

३-तीसरी और सबसे अंतिम अवस्था में व्यक्ति अवसाद के गहरे समुद्र के तल पर बैठा हुआ होता है। अपने ऊपर निराशा के पानी का करोड़ो टन का वजन लिए उस व्यक्ति का जीवन बहुत दयनीय हो जाता है। सनातन शास्त्रों में जिस नरक का उल्लेख किया गया है वह यही है। ऐसा कहते हैं कि व्यक्ति का मस्तिष्क इस अवस्था में ऐसी विचित्र फ्रीक्वेंसी पर स्थिर होता है जो कि तामसिक अथवा नकारात्मक शक्तियों को आकर्षित करता है। ऐसे कई उदाहरण देखने मे आते हैं जहाँ इस अवस्था के निराश व्यक्ति को सर्वत्र नकारात्मकता की परछाइयाँ दिखाई देती है जो उसे गलत कदम उठाने को विवश कर देती है। ऐसे में व्यक्ति ना चाहकर भी आत्महत्या करने पर बाध्य हो जाता है। इस अंतिम अवस्था में भी मन का वह उजला कोना अपना अंतिम प्रयास करता है व्यक्ति को दिलासा देने का। अब तक उस मनुष्य का व्यक्तित्व बहुत ही नाज़ुक हो जाता है और विवेक(अच्छे बुरे की समझ) खो चुका होता है जिसके कारण गलत निर्णय लेने का संवेग प्रबल हो जाता है।

परिणाम-एक और आत्महत्या।

आज आवश्यकता है ऐसी शिक्षा प्रणाली की जो बचपन से ही बच्चों को हारने पर भी खुश रहना सिखाये। युवा पीढ़ी को "क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाएंगे" वाले भगवद्गीता के वैश्विक सत्य को स्वीकार करना सिखाना हमारा परम कर्तव्य है। मन को स्वच्छ और स्वभाव को सरल रखना भी एक अच्छी आदत है। उपायों की विस्तृत जानकारी के लिए आप मुझसे व्यक्तिगत रूप से संपर्क कर सकते हैं।

-मूल लेखक
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"Modern Homeo Clinic" has been serving this Nimad region since year 1982 & helped people preventing,treating & curing th...
10/06/2020

"Modern Homeo Clinic" has been serving this Nimad region since year 1982 & helped people preventing,treating & curing their illnesses even if it is their personal diseases or any epidemic/pandemic like Chikungunya, Viral, Dengue, Swine flu & also COVID-19.

"Modern Homeo Clinic" has been upgraded during this COVID-19 pandemic & shining like a millennium star..We are following all the basic guidelines for any Covid-19 certified clinic.
for example-
1-Online appointments
2-Proper Senitization
3-Social distancing
4-Non contact thermal scanning
5-Oxygen saturation scanning
6-Mask & gloves for the Staff
7-Maintenance by Cleaning with 1% sodium hypochlorite solution
8-0% biomedical waste with covered dustbin
9-Corona Prevention through Homeo medicine-"Trishool"

Do visit the Modern Homeo Clinic for all acute & chronic ailments without being troubled by COVID-19..

TOGETHER WE CAN & WE WILL DEFEAT CORONA.

-Dr.Sumit Dindorkar
Modern Homeo Clinic
Opp.to Tagore Park
Khargone(M.P.)
Mob.+918435784747
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नमस्कार मित्रों।अब मैं प्रतिदिन अपने क्लीनिक मॉडर्न होम्यो क्लिनिक पर प्रातः 10:00 बजे से 1:00 बजे तक नियमित रूप से उपलब...
30/05/2020

नमस्कार मित्रों।अब मैं प्रतिदिन अपने क्लीनिक मॉडर्न होम्यो क्लिनिक पर प्रातः 10:00 बजे से 1:00 बजे तक नियमित रूप से उपलब्ध रहूंगा।संध्या के समय क्लिनिक बंद रहेगा।

मरीजों एवं उनके परिजनों हेतु कुछ विशेष निर्देश-

१-क्लिनिक में बिना मास्क के प्रवेश निषेध रहेगा।
२-क्लिनिक के द्वार पर ही आपके हाथों को सैनिटाइज करके प्रतीक्षा-कक्ष(वेटिंग चैम्बर) में शरीर का तापमान और रक्त में ऑक्सीजन सेचुरेशन की जाँच की जावेगी।३-जाँच के परिणाम सामान्य प्राप्त होने के उपरांत ही डॉक्टर चेंबर में प्रवेश करें।
४-क्लिनिक में हमेशा लॉकडाउन के नियमों अर्थात सामाजिक एवं व्यक्तिगत दूरियों को अनिवार्यतः बनाए रखें।
५-अपने मोबाइल में "आरोग्य सेतु एप" भी डाउनलोड करके रखें क्योंकि किसी भी डॉक्टर के यहाँ सदैव बीमार व्यक्ति ही आते हैं जिनमें से कुछ कोरोना संक्रमित हो सकते हैं।ऐसे में "आरोग्य सेतु एप्प" आपको तुरंत सूचित कर देगा।

स्मरण रखें-अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा का दायित्व मूलतः हमारे ही कंधों पर है।

-डॉ.सुमित दिंडोरकर
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25/04/2020

मित्रों,कल दिनांक 26 अप्रैल 2020 रविवार को मैं सुबह 7 से 9 क्लिनिक जाने वाला हूँ। जिन लोगों को दवाई की आवश्यकता है वे आज शाम तक मुझे फोन करें। फोन करना अनिवार्य है। फोन पर बात करके मैं आपकी दवाई के पैकेट तैयार रखूंगा ताकि सुबह क्लिनिक से केवल पैकेट का वितरण किया जा सके।

अति विशेष बात-"दवाई पैकेट लेने हेतु कोई भी मरीज/परिजन मास्क अवश्य पहनकर आये और सामाजिक दूरियों का अनुपालन अनिवार्यतः करें।"

-डॉ.सुमित दिंडोरकर
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होम्योपैथी के जनक डॉ.सैम्युअल हैनिमैन के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। डॉ.हैनिमैन स्वयं एलोपैथी में एमडी होने के बाद भ...
10/04/2020

होम्योपैथी के जनक डॉ.सैम्युअल हैनिमैन के जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। डॉ.हैनिमैन स्वयं एलोपैथी में एमडी होने के बाद भी एलोपैथी की दवाइयों के साइड इफेक्ट और सीमित इलाज के कारण प्रैक्टिस छोड़कर किताबों के अनुवाद का काम करने लगे। उन्हें 14 से अधिक भाषाओं का ज्ञान था। गहन अध्ययन बाद ही उन्हें होम्योपैथी के आविष्कार करने की प्रेरणा मिली। आज होम्योपैथी से मेरे जैसे हजारों होम्योपैथिक डॉक्टर्स पूरे विश्वभर में जटिल से जटिल बीमारी को जड़ से ठीक करके लाखों रोगियों को स्वास्थ्यलाभ दे रहे हैं। जहां एलोपैथी की सीमा खत्म होती है वहीं से होम्योपैथी का काम शुरू होता है।

जय हैनिमैन
जय होम्योपैथी

-मूल लेखक
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नमस्कार मित्रों।कोरोना से संबंधित यह अतिआवश्यक पोस्ट अवश्य पढ़ें।समय ना होने का बहाना तो अब है ही नहीं।आज का हमारा महत्व...
28/03/2020

नमस्कार मित्रों।

कोरोना से संबंधित यह अतिआवश्यक पोस्ट अवश्य पढ़ें।समय ना होने का बहाना तो अब है ही नहीं।

आज का हमारा महत्वपूर्ण विषय है-

"लॉकडाउन/कर्फ्यू की मनोवैज्ञानिक चुनौतियाँ।"

कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन/कर्फ्यू की स्थिति में सबसे बड़ी चुनौती युवा पीढ़ी(20-45 वर्ष तक की उम्र के लोगों) के लिए है और वह चुनौती है-अपने परिवार के वरिष्ठजनों अथवा बुजुर्गों को घर में टिकाये रखने की।

एक मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता होने के नाते मुझसे मेरे कई पेशेंट्स प्रश्न पूछ रहें हैं कि-
"सर, हमारी पत्नी और हमारे समवयस्क (हमउम्र के) लोगों यहाँ तक कि हमारे चंचल बच्चों तक को हम घर में टिके रहने के लिए मना चुके हैं लेकिन हमारे पिताश्री या हमारे दादाजी नहीं मानते। दिन में एक-दो बार तो वो घर के बाहर निकलते ही हैं, मोहल्ले के कोने तक होकर आते हैं, या अपने पोते को चौराहे तक सैर करवाने की ज़िद करते हैं,पड़ोस के उनके मित्र से सटकर बात करते हैं, बाहर से आने के बाद हैंडवॉश भी नहीं करते हैं। यहाँ तक कि अखबार और दूध की थैलियों से कोरोना के संभावित खतरे को दरकिनार करके इस गंभीर महामारी को अत्यंत हल्के में ले रहे हैं। बुजुर्गों को स्वयं की चिंता भले ही ना हो पर वे अपने परिवार अपने बच्चों या नाती पोतों के बारे में भी नही सोच रहें हैं और अपनी पहले की दिनचर्या में रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं करना चाहते। उल्टा यह कह रहें है कि 'कोरोना-फोरोना' से मुझे या मेरे परिवार को कुछ नही होगा।मैं ना तो मास्क लगाऊंगा और ना ही हैंडवाश करूँगा। और घर के बाहर निकले बगैर तो मेरा गुजारा ही नहीं होगा।

"सर,इसका कोई हल है क्या?"

वास्तव में यह एक बहुत ही विकट समस्या है। वस्तुतः इसे ही 'जनरेशन-गैप' या 'दो पीढ़ियों के बीच की खाई' कहते हैं। उनके इतने विशाल जीवन में इस स्थिति से वो लोग एक बार भी नहीं गुजरे हैं। भले ही उन्होंने हैजा या प्लेग जैसी महामारी का समय देखा हुआ है, आतंकवादी घटनाओं के कारण होने वाला क्षणिक लॉकडाउन देखा हुआ है और दंगों के समय लगने वाला कर्फ्यू भी देखा है पर हमें उनको यह समझाना पड़ेगा कि यह कर्फ्यू या लॉकडाउन उस समय के जैसा नहीं है। हम युवा पीढ़ी को इस बात का हल वाद-विवाद से नहीं बल्कि संवाद के माध्यम से निकालना पड़ेगा। वरिष्ठों को समझाएं कि यदि आप अपने बच्चों या नाती-पोतों से प्रेम करते हैं तो उन्हें या स्वयं बाहर जाने के स्थान पर घर पर ही रहे।बुजुर्गों को हैंडवाश की आदत बार-बार किन्तु आग्रहपूर्वक लगवाएं। यदि वरिष्ठजनों का बाहर जाने का मन हो रहा हो तो उनके साथ घर में ही कैरम या शतरंज जैसे खेल खेलें या उनके प्रिय विषय पर हल्की-फुल्की चर्चा का सत्र रख लें। उन्हें भरोसा दिलाएं कि इस कठिन समय में अपनी इन्ही आदतों के माध्यम से वो अपने बच्चों,नाती- पोतों या परिवार के प्रति प्रेम को सच्चे अर्थों में अभिव्यक्त करेंगे।

मेरा सभी वरिष्ठों,बुजुर्गों,अंकलों से सविनय अनुरोध है और एक चिकित्सक होने के नाते अधिकारपूर्वक आग्रह भी है कि कोरोना को कतई हल्के में ना लें। ये ना सोचें कि अभी कोरोना हमारे आसपास नहीं पहुँचा है। मुठ्ठी बंद होती जा रही है। आने वाला समय हमारे आज के समय पर निर्भर करता है। नाती/पोतों को विरासत में पैसा या जायदाद देने के स्थान पर या नाती-पोतों को खुश करने के लिए चॉकलेट का लालच देने के स्थान पर स्वयं घर पर टिके रहकर एवं उनके स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहकर अपना प्रेम व्यक्त करें।यही आपका बड़प्पन है। यदि आप अपने परिवार,बच्चों और नाती-पोतों को सकुशल और स्वस्थ देखना चाहते हैं तो-

"घर पर रहें।"

-मूल लेखक
डॉ.सुमित दिंडोरकर
होम्योपैथ व काउंसिलर
मॉडर्न होम्यो क्लिनिक
टैगोर पार्क के सामने
खरगोन(म.प्र.)
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नमस्कार मित्रों।कोरोना वायरस से बचने के बारे में हम लोग मीडिया के माध्यम से कई प्रकार की जानकारियां पा रहे हैं। छींकते औ...
21/03/2020

नमस्कार मित्रों।

कोरोना वायरस से बचने के बारे में हम लोग मीडिया के माध्यम से कई प्रकार की जानकारियां पा रहे हैं। छींकते और खांसते समय मुंह को ढँकना या मास्क लगाना, हाथ लगातार धोना, सेनिटाइजर का उपयोग करना और घर पर रहना यह तो हम पिछले 1 महीने से सुन ही रहे हैं पर मैं ऐसी १० बहुत महत्वपूर्ण बातें इस पोस्ट के माध्यम से बताना चाहता हूं जो कदाचित आपने कहीं पढ़ी या सुनी नहीं होगी और इन छोटी-छोटी बातों की ओर सामान्यतया किसी का भी ध्यान नहीं जाता पर यह कोरोना वायरस रोकने में बहुत ही आवश्यक मील का पत्थर साबित हो सकती है। पोस्ट बड़ी हो सकती है पर ये १० बातें हैं बड़ी कारगर।अतः अवश्य ध्यान से पढ़ें।

१-घर के बाहर एक हैंडवाश की बोतल, बाल्टी भर पानी और मग्गा अवश्य रखें ताकि घर में आने के पूर्व प्रत्येक सदस्य का हाथ धोना सुनिश्चित हो सके।

२-अति आवश्यक होने पर घर से बाहर जाते समय अपने साथ कुछ ना ले जाए। अर्थात ना पर्स, ना घड़ी, ना किसी प्रकार की चाबी,ना पेन या कमर का बेल्ट।यहां तक कि शरीर पर गहने भी ना हो। ना अंगूठी ना मंगलसूत्र या चेन, ना कान की बाली और ना ही कलाई पर पूजा का नाड़ा। बिना पर्स के केवल जेब में कुछ रुपए, मोबाइल और रुमाल के अतिरिक्त कुछ ना हो। इसका कारण यह है कि आप घर आकर अपने हाथ तो धो लेंगे लेकिन अपनी घड़ी या गहनों को तो नहीं धोएंगे ना। यदि संपूर्ण सुरक्षा चाहते हैं तो बाहरी वातावरण से जिन-जिन चीजों का सीधा संपर्क हो रहा है उन चीजों को बाहर ही ना ले जाए और घर आने पर घर के बाहर ही रखे हैंडवाश से अपने हाथों के साथ-साथ अपने गाड़ी की चाबी को धोना ना भूलें।

३-कोरोना वायरस से बचाने वाली मेरी निजी खोज "होम्योपैथिक त्रिशूल" की पुड़ियाओं की तरह अन्य कई प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक दवाएं जैसे तुलसी-अर्क, गिलोय या हल्दी का दूध आप लेते रहे। ये दवाइयां और नुस्खे बहुत प्रभावी सिद्ध हुए हैं।

४-प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण ही लोग कोरोना की चपेट में आ रहे हैं और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तेज गति के व्यायाम, सूर्यनमस्कार और प्राणायाम जैसे भस्त्रिका, कपालभांति, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और ओम का उच्चारण(उदगीथ) आदि अनिवार्यतः करें अन्यथा किसी भी प्रकार की दवाई या नुस्खे से आपको संपूर्ण सुरक्षा नहीं मिलेगी।

५-खट्टी और ठंडी चीजें या फल ना खाएं।तली-गली चीज़ें, फ्रीज का ठंडा पानी या जूस, लस्सी, दही, छाछ, कढ़ी, रायता, अचार, नींबू, केले, सेवफल, संतरा, अंगूर, मौसंबी, अनार, जामफल, सीताफल इत्यादि भूल से भी ना चखें क्योंकि भले ही इन चीज़ों को खाने से कोरोना वायरस नहीं फैलता पर चूंकि इन फलों की प्रकृति "शीत-प्रकृति" होती है अतः यह अनावश्यक सर्दी और गले में खराश पैदा करके फ्लू या कहें कोरोना के समानांतर लक्षण देकर हमें और आपके डॉक्टर को चिंतित कर सकते हैं।

६-कुछ दिन कृपा करके घर पर ही शेविंग अथवा "शौर कर्म" यानी दाढ़ी बनाएं या यदि दाढ़ी बनानी नहीं आती हो तो कुछ दिनों तक उसे बढ़ने ही दें। इसका एकमात्र उद्देश्य केवल आपको लोगों के सीधे संपर्क में आने से रोकना है।

७-रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय है ध्यान अर्थात मेडिटेशन। साथ ही फुर्सत के क्षणों में मोबाइल में आंखें गड़ाने या टीवी को चाटने के स्थान पर किसी रोचक पुस्तक को पढ़ने से भी हमारा मन शांत होता है और प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी बढ़ती है।

८-यदि आपके घर में भगवद्गीता, रामचरितमानस या ऐसी कोई भी धार्मिक पुस्तक हो तो उसे आप स्वयं भी पढ़ें और परिवार को भी पढ़ाये ताकि सकारात्मक विचारों से आपके परिवार के मानसिक स्वास्थ्य की वृद्धि हो सके।

९-घर में भजन अथवा शास्त्रीय संगीत धीमी आवाज में बजाएं। मन के स्वास्थ्य और इम्युनिटी के साथ साथ शास्त्रीय संगीत की तरंगें किसी भी वायरस को समाप्त या निष्क्रिय कर सकती है ऐसा कई अनुसंधानों से सिद्ध हुआ है।आप चाहें तो प्रातः और संध्या की आरती अपने परिवार के साथ घंटी या अन्य वाद्य यंत्रों के साथ करें। म्यूजिक थेरेपी या संगीत चिकित्सा से कई शारीरिक और मानसिक विकार और कमजोरियां दूर होती हैं।

१०-अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण सलाह है नोट(रुपये) अर्थात करेंसी के बारे में। यह भारत में कोरोना वायरस को फैलाने में सबसे ज्यादा तेज वाहक हो सकती है। अतः जब-जब भी आप किसी नोट को छुएं तुरंत हाथ सेनिटाइज़ करें या धोएं। क्या पता वो नोट किसी कोरोना वायरस के वाहक के हाथों से गुजरा हो।

ये १० बातें मैंने अपने निजी चिकित्सकीय अनुभव और एक भारतीय होने के नाते से लिखीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) की निर्देश पुस्तिका में कई निर्देश होंगे पर भारतवासियों के लिए सूक्ष्मता से निर्देश एक भारतीय डॉक्टर ही बना सकता है। इसीलिए मेरी यह छोटी सी पोस्ट इस कोरोना वायरस के महासागर पर पुल बनाने के लिए गिलहरी द्वारा डाले गए कुछ रेतकणों की तरह मदद कर पाए तो मेरी यह पोस्ट सार्थक होगी। अतः कृपया इसे पूरा पढ़ें व फेसबुक व्हाट्सएप आदि सारी जगहों पर इसे शेयर करें।

जीवंत रहें…
स्वस्थ रहें…

-मूल लेखक
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मेरे प्यारे भारत के डेढ़ शाणे निवासियों।पहले तो आप लोगों को डेढ़ शाणा या अति सयाना कहने के लिए मुझे क्षमा करें पर मैं यह...
20/03/2020

मेरे प्यारे भारत के डेढ़ शाणे निवासियों।

पहले तो आप लोगों को डेढ़ शाणा या अति सयाना कहने के लिए मुझे क्षमा करें पर मैं यह सभी के लिए नहीं कह रहा हूं। मैं उन कुछ अधिक समझदार लोगों के लिए यह कह रहा हूं जो अभी तक कोरोना वायरस की गंभीरता को हल्के में उड़ा रहे हैं।

ये अति समझदार लोग आपको बिना मास्क/गमछे के पूरे खरगोन में घूमते हुए दिख जाएंगे।

ये वो अति सयाने लोग हैं जो अभी भी सबसे हाथ मिला रहे हैं।

ये वो अति सयाने लोग हैं जो कि घर पर आते ही बिना साबुन से हाथ धोए अपने बच्चों को या परिवारजनों को छू रहें हैं।

जी हां…

ये वही ज्यादा समझदार प्राणी है जो अभी भी अपनी गंवारों जैसी स्टाइल में बिना मुंह पर हाथ रखे छींकते या खांसते हैं और अपने हाथ में लगे हुए लार के बारीक कणों को खिड़की के पर्दे से पोंछकर ही कोरोना वायरस तक को मार डालने का दंभ भर रहे हैं।

ये लोग अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि विश्वगुरु भारत के प्रधानसेवक श्री नरेंद्रजी मोदी जब 1 दिन के कर्फ्यू की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब ही है स्थिति वास्तव में बड़ी विचारणीय है। ये अति शाणे लोग तभी जागते हैं जब कोई व्यक्ति इनकी कनपटी पर सीधे बंदूक टिका देता है या कदाचित ऐसे अवसर पर भी यह अपनी तथाकथित बहादुरी दिखाकर स्थिति की गंभीरता को पहचान नहीं पाते। यह बात सत्य है कि अति भयभीत ना हों बल्कि केवल थोड़ी सी तो सावधानी बरती जाए ताकि इस कोरोना वायरस से पूरी तरह से छुटकारा पाया जा सके पर भारत की सयानी जनता तो "भोली भाली" है।

एकदम निरीह और सीधी।

यह जनता किसी गोली चलाते हुए आतंकवादी को देखने के लिए सड़क पर दौड़ पड़ती है जबकि अन्य देशों में 10 वर्ष के बच्चे को भी यह ट्रेनिंग दी जाती है कि गोली की आवाज सुनते ही जमीन पर लेट जाना है ताकि सिविलियंस यानि आम नागरिक और आतंकवादी को चलती हुई गोलियों के बीच से भी पहचाना जा सके।

धन्य है मेरे भारत की भोली या कहिये मूर्ख जनता।

कर्फ्यू के दिन रोड या मार्केट कितना खाली है यह देखने ना जाए बल्कि घर के अंदर ही रहे। नाक-मुंह बांध कर रखें। हैंडवॉश या साबुन से हाथ धोने की अच्छी आदत डालें और अपने और अपने परिवार की सुरक्षा करें।

यदि आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो ध्यान रखें कि-
"सयाना कौवा कहां जाकर बैठता है।"

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नमस्कार मित्रों।कोरोना वायरस से बचाने वाली मेरी खुद की खोज की गई तीन दवाइयों की पुड़ियाएँ जिन्हें मैं "होम्योपैथिक त्रिश...
13/03/2020

नमस्कार मित्रों।

कोरोना वायरस से बचाने वाली मेरी खुद की खोज की गई तीन दवाइयों की पुड़ियाएँ जिन्हें मैं "होम्योपैथिक त्रिशूल" के नाम से संबोधित करता हूँ मेरे क्लीनिक पर नाममात्र के शुल्क पर उपलब्ध है। आजकल 'आर्सेनिक एल्बम 30' नाम की होम्योपैथिक दवाई को प्रचारित किया जा रहा है जो कि नितांत गलत है। ऐसे होम्योपैथिक डॉक्टर जिन्होंने केवल नाम के लिए होम्योपैथिक डिग्री ली है पर प्रैक्टिस एलोपथिक कर रहे हैं उनके द्वारा इस दवाई का दुष्प्रचार किया जा रहा है। ऐसे तथाकथित डॉक्टर इतना भी नही जानते कि होम्योपैथी के जनक डॉ.हैनिमैन साहब ने अपनी पुस्तकों में प्रिवेंशन अर्थात बचाव के लिए या तो किसी नोसोड(होम्योपैथिक दवाई का एक प्रकार) और/अथवा किसी 'डीप एक्टिंग रेमेडी' अर्थात 'गहराई से काम करने वाली दवाई' की सलाह दी है वो भी उच्च शक्ति की। आयुष मंत्रालय में भी कदाचित ऐसे डॉक्टर हैं जो अध्ययन में कच्चे रह गए तभी एक ही कम शक्ति की दवाई के सहारे कोरोना प्रिवेंशन करने चले हैं।जब हथियार ही हल्के हों तब सुरक्षा भी सीमित ही रहेगी।अतः अनाड़ी डॉक्टर्स के भुलावे में ना रहें और सम्पूर्ण सुरक्षा करें।आज ही अपने और अपने परिवार के लिए मेरी निजी खोज वाली "होम्योपैथिक त्रिशूल" की तीन पुड़ियाओं के माध्यम से ना केवल कोरोना बल्कि डेंगू, मलेरिया, टाइफाइड, वायरल बुखार, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, जीका वायरस, एंथ्रेक्स, चमकी बुखार, ईबोला जैसी जानलेवा बीमारियों के होने से पहले ही उनसे बचाव कर लें।

स्मरण रखें-
त्रिशूल ही देगा सम्पूर्ण सुरक्षा 🔱

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नमस्कार मित्रों।आप सभी को होलीका पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।होम्योपैथी में कोरोना वायरस के बचाव के लिए मैंने तीन दवाइय...
10/03/2020

नमस्कार मित्रों।

आप सभी को होलीका पर्व की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

होम्योपैथी में कोरोना वायरस के बचाव के लिए मैंने तीन दवाइयों की पुड़ियाओं की खोज की है। यह होम्योपैथिक "त्रिशूल" कोरोना वायरस के हमारे शरीर में आने के पूर्व ही शरीर में ऐसी प्रतिरोधक शक्ति का विकास कर देगा जो कोरोना वायरस के साथ-साथ डेंगू,मलेरिया,वायरल बुखार, स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया व टाइफाइड जैसी जानलेवा बीमारियों को भी तत्काल यमराज तक पहुंचा देगा। महाकाल के त्रिशूल की भांति होम्योपैथी का यह कोरोना घाती त्रिशूल जनहिताय मेरे क्लीनिक पर नाममात्र के शुल्क पर उपलब्ध है। कृपया समय ना गवाएं और तुरंत ही समझदारी का परिचय देते हुए अपने और अपने परिवार के लिए इस त्रिशूल का उपयोग करें।

त्रिशूल अपनाएँ
कोरोना भगाएँ

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